पहली बारिश मे टहलना

September 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

पहली बारिश मे टहलना….
देखना कभी शाम ढलना…
तितलियों के पर पकड़ना….
ख्वाब का आँखो मे पलना..
बात छोटी है
मगर मायने रखती है….
रूठे बच्चे को मनाना….
दर्द मे भी मुस्कुराना…
काँच रस्ते से हटाना…
हो अँधेरा लौ जलाना….
बात छोटी है
मगर मायने रखती है…
हाथ गिरते को बढ़ाना…
रोते इंसा को हसाना…
सच को चुनना
सच सुनाना….
बात छोटी है
मगर मायने रखती है….

– लवराज

चलो ना

July 22, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलो ना…..
खो जाये दोनो…..
उस दुनिया मे ….
जहाँ सड़को पर किताबो के
किरदार मिलते हो…..
जहाँ तस्वीरें बात करती हो….
जहाँ बारिश ना रुके…..
जहाँ चाँद बेदाग निकले…..
पूरा का पूरा….
जहाँ ठण्ड को ओढ़े एक घास का मैदान हो
वही रुक जायेंगे दोनो….
बाते करेंगे अलाव जला कर
मैं तुम को समझूँगा….
और इस तरह खोकर…
हम एक दूसरे को पा लेंगे…

– लवराज

शाम अब ऐसी लगती है

January 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

शाम अब ऐसी लगती है
जैसे बीते दिन का पुराना अखबार रखा हो
ना कोई नयी खबर है…
ना कहने को कोई किस्सा…
ना धूप सुनहरी लगती है..
ना रात स्याह…
सब कुछ फीका सा हो गया है जैसे
वो भी क्या वक़्त था…
जो college की तस्वीर मे कैद हो गया

– लवराज टोलिया

बारिश के मौसम मे अकसर

January 20, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बारिश के मौसम मे अकसर
अदरक वाली चाय की खातिर….
हल्की सी एक “walk” लेकर…
“कॉलेज” की “कैंटीन” तक हो आते थे दोनो…
चाय क्या थी एक बहाना था
तुम्हे जी भर के देख लेने का….
और फिर अफसानों का दौर चल पड़ता
तुम बातो की ढील छोड़ती…..
और मैं किस्सों वाले “माँजे” का…
एक सिरा थाम लेता…
पतंग अच्छी ही उड़ी थी
हम दोनो के रिश्ते की….
फिर कुछ यूँ हुआ
तुम्हारी बातो का तागा कच्चा पड गया…
या मैंने ही छोड़ दिया “माँजा” शायद….
कैंटीन से दोनो एक दिन
खामोश लौट आये….
टेबल पर रखे दो गिलास…
बहुत देर तक ताकते रहे
खाली पड़ी कुर्सियो को….

लवराज टोलिया

तुम आहिस्ता से पर्दे खोल देना

January 20, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम आहिस्ता से पर्दे खोल देना
सुबह खिड़की के….
मैं बन के धूप चौखट से तुम्हारी
छन के आऊँगा…
जब पंछी चहचायेंगे तुम्हारे घर के आँगन मे…
जरा तुम गौर से सुनना
मेरी आवाज मिलेगी…
कभी जो सर्द सा झोंका
तेरे चेहरे से टकराये….
समझना मैं हवा मे था…
तुम्हे छू कर गुजर गया….
मैं साया तेरा बन कर…
तुम्हारे साथ रहा हूँ…
मैं उन गीतो मे होता हूँ…
जिन्हें तुम गुनगुनाती हो….
मैं हर जगह रहता हूँ…
बीता नही हूँ मैं
हर मंजर मे मिलूँगा
जो मुझको देख पाओ तुम
लवराज टोलिया

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