शिक्षक

October 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं शिक्षक हूँ
मुझसे अपेक्षा
समाज करता है।
मैं सत्य बोलूँ,
सादा रहूँ ,
सादा पहनू ,
कम बोलूँ ,
खर्च ज्यादा करूँ।
छात्रों को न मारू,
न डांट लगाऊं,
जो सरकार चाहे,
बस वह ही पढ़ाऊँ,
चाहे छात्र कोई भी हो ,
न धनिया मिर्ची
हरी सब्जी लूँ ,
कोई नेता आये ,
तो उसे सम्मान ,
मेरे अधिकारी से
ज्यादा दूँ।
अभिभावकों के ,
सामने हाथ जोड़ ,
खड़ा रहूँ।
जिन्हें नही जानता ,
उनके भी जाति,
मूल निवास के ,
कागजो पर हस्ताक्षर,
झूँठी शपथ के साथ करूँ।
मुझे चेक करने ,
कमी पर लताड़ पिलाने ,
का अधिकार अनेक को ,
परन्तु मेरे अच्छे काम पर ,
कुछ देने का अधिकार ,
किसी को नही,
मैं अच्छा हूँ या बुरा ,
इसका निर्णय छात्र नही,
अधिकारी नही,
सत्तापक्ष के
कार्यकर्ता करें,
बदले मैं मुझे मिलेगा क्या?

आप जानते ही है ,
परम् सम्मान
ए मास्टर…….।

*कलम घिसाई*