ख़ुशी जिसे कहते हैं

September 10, 2016 in गीत


ख़ुशी जिसे कहते हैं, वो चीज ढूंढता हूँ
गैरों की इस दुनिया में अपनों को ढूंढता हूँ
अकेला तो न था पहले कभी इतना
साथ चले थे जो उन क़दमों को ढूंढता हूँ
ख़ुशी जिसे कहते हैं, वो चीज ढूंढता हूँ

वक़्त बदला, लोग बदले, तुम बदले, और मैं…
जो संभाल कर रखी थी यादें
उन यादों की टूटी हुई मालाओं के मोती ढूंढता हूँ
गैरों की इस दुनिया में अपनों को ढूंढता हूँ
ख़ुशी जिसे कहते हैं वो चीज ढूंढता हूँ

मुसीबतों की तपती धुप में मैं बंजारा सा
पल दो पल की छावँ ढूंढता हूँ
बांतों में बात, हाथों में हाथ और
जो मिटगई इन हाथों से वो लकीरें ढूंढता हूँ
ख़ुशी जिसे कहते हैं, वो चीज ढूंढता हूँ

दुःख तो है पर दुखी नही हूँ
खुश भी नही, नाखुश भी नही
जो होगया वो क्यों हुआ बस इसकी वजह ढूंढता हूँ
गैरों की इस दुनिया में अपनों को ढूंढता हूँ
ख़ुशी जिसे कहते हैं, वो चीज ढूंढता हूँ


 

काश

September 9, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता


देखता हूँ अक्सर खिड़की से, कुछ कोयल दाना चुगती हैं
फुदक फुदक कर चुगते चुगते फिर वो सब उड़जाती हैं
काश मैं भी उड़पाता, रंग आसमान के देखपाता
आज़ादी क्या होती है काश मैं भी जान पाता

पर हम सब तो उलझें हैं जीवन के जाल में
कैद हो चुकें हैं जिम्मेदारियों के जंजाल में
दिखती नही पर बेड़ियाँ तमाम हैं हर हाल में
काश मैं भी उदपाता, ये साड़ी बेड़ियाँ तोड़ पाता
आज़ादी क्या होती है काश मैं भी जान पाता

फिर आज एक कोयल मुझसे बोली क्या समझते हो तुम खुदको
तुम तो खुद कैद हो, क्या कैद करोगे तुम मुझको?
पंख तो कट चुकें हैं तुम्हारे, पैर भी अब छिलने को हैं
किसके पीछे भाग रहे हो न जाने ऐसा क्या मिलने को है!
आ तोड़ इस जाल को, आ चल संघ मेरे आकाश को
फिर पंख तुझको लग जाएंगे, आबाद तू हो जाएगा
जीवन के इस जंजाल से आज़ाद तू हो जाएगा

पलक झपकी, सपना टूटा, बैठा था एक कमरे में
खिड़की खुली थी अब भी, कोयल बैठी थी अब भी
शोर मचा, वो उड़ गयी, और मैं…. काश !!!!!
काश मैं भी उड़ जाता
काश मैं भी आज़ाद हो जाता !!!!


 

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