पूस की रात

December 25, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

हॉय पूस की रात,
तू कितना दर्द देता है।

वो मुझसे दूर क्या हुई,
उसके संग गुजरा हर लम्हा याद आता है।।

हॉय पूस की रात,
तू कितना दर्द देता है।

मैं उसका मन था,
वो मेरे मन से जुड़ती थी।

कैसे छोड़ गयी मुझको,
जो अकेले पन से डरती थी।।

चन्दा की तरह अब सफर है अकेला,एकाकी मन रोता है।।

हॉय पूस की रात,
तू कितना दर्द देता है।

पूस की रात

December 25, 2019 in Other

हॉय पूस की रात,
तू कितना दर्द देता है।

वो मुझसे दूर क्या हुई,
उसके संग गुजरा हर लम्हा याद आता है।।

हॉय पूस की रात,
तू कितना दर्द देता है।

मैं उसका मन था,
वो मेरे मन से जुड़ती थी।

कैसे छोड़ गयी मुझको,
जो अकेले पन से डरती थी।।

चन्दा की तरह अब सफर है अकेला,एकाकी मन रोता है।।

हॉय पूस की रात,
तू कितना दर्द देता है।

दिल की बस्ती

December 24, 2019 in मुक्तक

खुश रहने की वजह ढूंढ़ोगे,

तो कम ही मिलेंगें।

यहाँ हर चेहरा हस रहा बाहर से,

पर अन्दर तो गम ही मिलेंगें।।

झाँक कर देखोगे दिल की बस्ती में,

तो बस खाली शहर ही मिलेंगें।

नवीन’ नही कोई जहाँ में अपना ,

यहाँ बस पराये ही मिलेंगें।।

अपराध

December 23, 2019 in शेर-ओ-शायरी

अब न रह विस्वास किसी पे,
जब अपने ही दरिन्दगी में उतर आयें।
अपराध बढ़ रहा चरम पे,
कैसे रुके कोई बतलायें।।

मीठा दर्द

December 22, 2019 in शेर-ओ-शायरी

यूं न मेरी मोहब्बत को रुसवा कर,

ज़माने ने बहुत दर्द दी है।

बस एक बार मिल रूह से रूह तक,

चले जायेंगे हम यहाँ से ज़माने से किसे हमदर्दी है।।
नवीन द्विवेदी

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