हम बहुत बेकार लोग हैं

July 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम बहुत बेकार लोग हैं

दुनिया के लिए…

लेकिन

बहुत ख़ास हैं हम

“एक-दूसरे के लिए”…..

कितने सोलह सोमवार किए

July 7, 2018 in शेर-ओ-शायरी

कितने सोलह सोमवार किए….
इस ‘सावन’ में तो “पिया” मिले !

कई साल बीत गये

July 3, 2018 in मुक्तक

उनकी तरफ से तो

July 2, 2018 in मुक्तक

उनकी तरफ से तो

इक इशारा भी ना हुआ…

ऒर हम कम्बखत…

उनसे इश्क़ कर बैठे हैं….

राजनंदिनी रावत

कई साल बीत गए

July 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कई साल बीत गए

लेकिन लोगों की

“छोटी सोच”

अभी तक “बड़ी” नहीं हुई….

उन्हें

धर्म दिख रहा हैं….

दर्द में तड़पती

बेटियाँ नहीं….

कोई तो ऐसा मिले ‘खुदा’….

June 28, 2018 in मुक्तक

कोई तो ऐसा मिले ‘खुदा’….

जब भी तेरे दर पे आऊँ….

उसके संग ही आऊँ !

राजनंदिनी रावत-राजपूत

मृत्यु ही सत्य हैं

June 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मृत्यु ही सत्य हैं

शेष

सब तथ्य हैं ।

– राजनंदिनी रावत

अस्थिर

June 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

शीर्षक – अस्थिर

जो सोचती हूँ अपने बारे में
शायद किसी को समझा पाऊँ,

मैं वो पानी की बूंद हूँ जो
आँखों से आँसू बनकर छलक जाऊँ

तस्वीर बनाना आसान हैं किसी की
कोशिश करती हूँ
उसकी भावनाओं को समझ पाऊँ,

मंज़िल हैं इतनी दूर बनायीं
इस मोड़ पर शायद ही कभी लौट पाऊँ

ना करना विश्वास मुझ पर कभी
मैं वो ख़्वाब हूँ जो आँख खुलते ही बदल जाऊँ

तमन्ना रखते हैं जिन चाँद-तारों को छूने की
उन्हें जमीं पर रहकर हासिल कर पाऊँ

मेरी ज़िंदगी हैं वक़्त की तरह
शायद ही किसी के लिए ठहर पाऊँ,

कोशिश करती हूँ उन पुरानी यादों को ज़िंदा रख पाऊँ,

जिन राहों में खोई हैं ज़िंदगी
उन्हें अपनी मंज़िलो से मिला पाऊँ,

जो सोचती हूँ अपने बारे में
शायद किसी को समझा पाऊँ ।

मृत्योपरांत स्मरण

June 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

शीर्षक – मृत्योपरांत स्मरण
(एक बेटी के भाव अपने पिता की मृत्यु पर )

जिसने हाथ पकड़कर चलना सिखाया
आज साथ छोड़ कर जा रहा है वो…

गिरकर सम्भलना सिखाया जिसने
आज फिर उठने से कतरा रहा है वो

जिसने हर एक को बनाया
आज टूटे जा रहा है वो

ठहरना सिखाया जिसने
आज चले जा रहा है वो

पढ़ लेता हैं जो मन की बात को
आज ज़ुबा से लफ्ज़ बयां ना कर पा रहा हैं वो

जिसने चेहरे से ना झलकने दिया गम कभी
आज आँसुओ की बारिश में भिगा रहा है वो

मन के कल्पित भावों को सुनहरा कहा जिसने
इसे भरम बता रहा है वो

जिसने हिफाज़त की हैं मेरी रखवाला बनकर
आज किस रब के हवाले
मुझे छोड़कर जा रहा हैं वो ।

राजनंदिनी रावत
ब्यावर,राजस्थान

जवाब…

May 13, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जवाब…
बस देती ही रही हूं जवाब…

घर जाने से लेकर
घर आने का जवाब…

खाने से लेकर
खाना बनाने का जवाब…

बस देती ही रही हूं जवाब…

चित्र से लेकर
चरित्र का जवाब…
सीता से लेकर द्रौपदी तक
बस देती ही रही हूं जवाब…

समर्पण में दर्पण देखने का समय ना मिला मुझे
मगर देती रही मैं सबको जवाब…

कभी उद्दंड
कभी स्वार्थी
कभी चरित्र हीन बताया…

थोड़ा अपने लिये जी
क्या लिया
अपनों को भी रास ना आया…

बेटी से पत्नी
पत्नी से बहू
बहू से माँ बन गयी…

नहीं खत्म हूवे सवाल
बस देती ही रही मैं जवाब…

आरंभ से लेकर अंत तक
बस देती ही रही मैं जवाब…

आज ज़िंदगी उस मुक़ाम पर हैं

May 11, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज ज़िंदगी उस मुक़ाम पर हैं

जहाँ दिल के टुकड़े हो गये

औऱ

ख़्वाब मुक़म्मल हो रहे हैं…

राजनंदिनी रावत
रावत-राजपूत

मन

May 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन
********
मन की बंजर धरती पर फूल उगाए कौन

मेरी सोई हिम्मत को,फिर से जगाए कौन

बिखरा-बिखरा हैं मन मेरा
टूटा टूटा जाए
कल्पनाओ में मेरे फिर आये कौन

जहाँ खो गई सुंगध सुमनों की,
वहाँ बगिया बनाए कौन,

जो खुद से हो अनजान बेख़बर
उसे अपनाये कौन

अहमियत नहीं जिस चीज़ की
उसे अपने घर सजाए कौन

अकेला खड़ा है जो सदियों से ,
किसी के इंतज़ार में,
उस खण्डहर में आए-जाए कौन ।

तुम्हारे जाने से

May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे जाने से
ज़िन्दगी
इतनी सी बदली हैं
पहले मुस्कुराते थे..अकेले में भी
अब
सबके बीच हँसते हैं…

– राजनंदिनी रावत

मैं उसकी तलाश में हुँ

May 2, 2018 in शेर-ओ-शायरी

मैं उसकी तलाश में हुँ
जिसकी तलाश ” मैं ” हुँ…

– राजनंदिनी रावत

माँ, मैं तुम्हारी गलतियों को फिर नहीं दोहराउंगी…

April 28, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ, मैं तुम्हारी गलतियों को फिर नहीं दोहराउंगी

मैं अपने बेटों को औरत की इज़्ज़त करना सिखाऊंगी

माँ,मैं तुम्हारी गलतियों को फ़िर नहीं दोहराउंगी

औरत होने का मतलब
डरना नहीं
मैं अपनी बेटियों को सिखाऊंगी

माँ, मैं तुम्हारी गलतियों को फिर नहीं दोहराउंगी

मैं अपने बच्चों को आत्म निर्भर बनना सिखाऊंगी

जीवन का मतलब सिर्फ़ बिताना नहीं
जीवन अमूल्य हैं, उन्हें समझाऊँगी,

माँ, मैं तुम्हारी गलतियों को फ़िर नहीं दोहराउंगी

मैं अपने घर जैसा,
अपना घर नहीं बनाऊंगी

माँ, मैं तुम्हारी गलतियों को फ़िर नहीं दोहराउंगी…

राजनंदिनी रावत

माँ

April 28, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू जो होती माँ
मैं कभी ना रोती माँ

मैं भी स्कूल में सबके साथ
तेरे बनाए पराठे खाती..माँ

सब बच्चो की तरह
मैं भी ठहाके लगाती..माँ

तू जो होती माँ
मैं कभी ना रोती.. माँ

जब भैय्या मुझे चिढ़ाते
तुम उसे डाँटती..माँ

मेरी पढ़ाई के लिए
पापा से तुम,लड़ जाती..माँ

तु जो होती माँ
मैं कभी न रोती माँ

मेरा बचपन खिल जाता
तेरा प्यार जो मिल जाता माँ

तु जो होती माँ
मैं कभी ना रोती माँ

ज़िंदगी इतनी दुश्वार ना होती

अगर तू होती माँ

मैं कभी ना रोती माँ ।

राजनंदिनी रावत

समझाये उन्हें क्या

April 21, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

समझाये उन्हें क्या,
जो अपनी बातों से मुकर गए ।

वो करते रहे, गैरो की परवाह
जिनके अपने आशियाने उजड़ गए ।

कभी मिलोगे तुम, दिल से भी हमसे
या मुहोब्बत के ज़माने गुजर गए…

कुछ तो खास है,तेरे मेरे दरमियां
यूँ तो बहुत मिले..कई बिछड़ गए

क्या बताये,क्या गुजरी हमपे साहिब
दिल मे रहने वाले
जब दिल से उतर गए,

ख्वाहिशें बहुत थी,तुझसे ऐ ज़िन्दगी,
जो समझें हम,तो मायने बदल गए ।

कवयित्री
राजनंदिनी रावत,ब्यावर(राजस्थान)

उसकी आबरु को यहाँ छीन लिया जाता हैं

April 15, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

उसकी आबरु को यहाँ छीन लिया जाता हैं,

जिस देश मे”बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ” का नारा दिया जाता हैं,

हर छोटे मसले पर यहाँ
बड़े फैसले होते हैं,

बस अहम बात को दबा दिया जाता हैं,

रौंद देते हो मासूमियत को पैरों तेले,

तुम्हारे अंदर का इंसान क्या मर जाता हैं,

जब आती हैं बात इंसाफ़ की,
मेरे देश का कानून किधर जाता हैं,

सीता हो,
द्रोपदी हो,
या हो निर्भया, आसिफा

क्यों,हर लड़ाई में
स्त्री के अस्तित्व को नोच दिया जाता हैं,

रहते हैं सिर्फ़ भक्षक यहाँ,

जिस धरती को देवताओं की जन्मभूमि कहा जाता हैं ।

– राजनंदिनी रावत,राजस्थान(ब्यावर)

सिर्फ़ अपनी झूठी शान दिखाते है लोग

April 4, 2018 in ग़ज़ल

सिर्फ़ अपनी झूठी शान दिखाते हैं लोग

दिल छोटा रखते हैं
इमारत बडी बनाते हैं लोग

नफ़रत दिल मे है
प्यार जताते है लोग

अपने सच से हैं बेख़बर
ओरो को आईना दिखाते हैं लोग

बेचकर ज़मीर अपना
नाम कमाते हैं लोग

ज़ख्म पे मरहम लगाते हैं
बाद में तमाशा बनाते हैं लोग

सब अपने मतलब से चलते हैं
रास्ता कहाँ बताते है लोग

जीते जी “जीने नही देते”
मर जाने पे आंसू बहाते हैं लोग ।

(राजनंदिनी राजपूत)-राजस्थान, ब्यावर

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