रश्मि ठाकुर
रोटी तलाशती ज़िन्दगी।
January 16, 2017 in Poetry on Picture Contest
तलाशती ये ज़िंदगी कचरे के ढेर में रोटी.
फेक देते हैं हम जो अनुपयोगी समझ के.
कैसे करते गुजर बसर ये भी इंसान तो हैं
जिंदगी ये पाकर मौत गले लगाये चल रहे.
ज़हर भरे स्थानों में इन्हे अमृत की खोज है.
ये जगह दो जून की रोटी देती ही रोज है.
कुछ कपडे ही मिल जायें फटे तन ढकने को.
यही हैं ताकती निगाहें थोड़ा सा हँसने को.
लेकर वही फटी मैली बोरी चल दिये रोज.
मन में विश्वास लिये आज मिलेगा कुछ और.
भूखा है पेट इनका और चेहरे पर मुस्कान.
ढेर कचरे का बन गया अब इनकी पहचान.
कट रही है जिंदगी ऐसे ही गंदगी ढोते हुये.
भविष्य नही इनसे क्या मेरे भारत का महान ?
रश्मि….