कविता:- सफर

June 22, 2017 in Other

जीवन के इस सफ़र में
प्रकृति ही है जीवन हमारा,
बढ़ती हुई आबादी में किंतु
हर मनुष्य फिर रहा मारा-मारा॥

मनुष्य इसको नष्ट कर रहा है
जिंदगी अपनी भ्रष्ट कर रहा है,
करके नशा देता भाषण
क्या नहीं जानता नशा नाश का कारण॥

मान प्रतिष्ठा या चाहे हो शोहरत
है निर्भर सब धन दौलत पर,
मान प्रतिष्ठा चाहे हो शोहरत
है निर्भर सब धन दौलत पर,
बनकर ब्रहमचारी सामने इस जग के
निगाहें रखता हर औरत पर॥

हर प्राणी ईश्वर की रचना
फिर भी प्राणी का प्राणी से बैर,
हर प्राणी ईश्वर की रचना
फिर भी प्राणी का प्राणी से बैर,
मतलब आने पर दुश्मन भी अपने
और मतलब जाने पर अपने भी गैर॥

मानव की है फितरत इतनी
दुनिया को बांटें धर्म का ज्ञान,
मानव की है फितरत इतनी
दुनिया को बांटें धर्म का ज्ञान,
मंदिर मस्जिद के नाम पे लेकिन
है लड़ता मरता हर इंसान
है लड़ता मरता हर इंसान॥॥॥

धन्यवाद॥॥

कविता:- अक्सर भूल जाता हूं मैं!!

April 18, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो दूसरों की गलती
वो दूसरों पर एहसान
चाहे मिले बेइज़्जती
या मिले सम्मान
वो दर्द का आलम
वो प्रेमिका की बेवफाई
वो उससे मिला धोखा
या फिर लंबी जुदाई
अक्सर भूल जाता हूं मैं, अक्सर भूल जाता हूं मैं।

वो दुश्मनों का वार
चाहे मित्र निकले गद्दार
वो उनकी कुटिल हंसी
या दिखावे का प्यार
वो मेरे चाहने वाले
बने आस्तीन का सांप
हरकतों में उनकी मैंने
ली थी जो गलती भांप
अक्सर भूल जाता हूं मैं, अक्सर भूल जाता हूं मैं।

वो छीना था जो मुझसे
मेरी मेहनत का कमाया धन
दुनिया की भीड़ में भी
वो मेरा अकेलापन
वो रास्तों के पत्थर
वो मंजिल की दीवार
वो मेरे पैरों के छाले
और दिन जो गुज़रे बेकार
अक्सर भूल जाता हूं मैं, अक्सर भूल जाता हूं मैं।

वो मां से खाई मार
और बाप की डांट फटकार
सब कुछ दिखता है मुझको
उनके दिल में छिपा प्यार
पर मैं घर जाकर अपनी
मां की गोदी से लिपटकर
रखकर सिर आँचल में
मैं अंदर ही अंदर
अपने आंसुओं को पी जाता हूं मैं
अक्सर भूल जाता हूं मैं, अक्सर भूल जाता हूं मैं.!..!…!….!

धन्यवाद!!!!!!!!

रोहन चौहान?

सोच, नए साल की.!.!

January 15, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

 

क्या इस साल भी लड़ना है तुमको
धर्म और जाति के नाम पर

क्या इस साल भी लुटने देनी है
लड़की की इज़्जत नीलाम पर

क्या इस साल भी सोचा है तुमने
फिर से घोटाले करने की

क्या नहीं छोड़नी आदत वो गंदी
दूसरों की कामयाबी से जलने की

क्या इस साल भी तुमने सोचा है
मां बाप को अपने ठुकराने का

क्या इस साल भी तुमने सोचा है
घर की बहुओं को जलाने का

क्या इस साल भी तुमको करनी है
बेटी की हत्या गर्भ में

क्या अब और भी तुमको कहना है
कुछ मुझसे इस संदर्भ में

क्या इस साल नहीं ठुकराना है
तुम्हें यह अपने स्वार्थ को

क्या खुद को बड़ा समझना है
और नीचा उस परमार्थ को

क्यों इस साल नहीं सोचा तुमने
कोई नया लक्ष्य बनाने का

क्यों इस साल नहीं सोचा तुमने
धरती माता को बचाने का

यदि इस साल यही है सोचा तुमने
जलते दीपक को बुझाने का

यदि यही प्रतिज्ञा करनी है तुमको
माझी(दूसरो) की कश्ती डुबाने का

तो कोई नहीं है हक यह यारों

नए साल का जश्न मनाने का
नए साल का जश्न मनाने का.!.!.!.!

नववर्ष की शुभकामनाएं.!.!.!.!.!.!.!.!.!
रोहन चौहान………..

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