डरा हुआ हु मैं | Dra Hua Hu Mai |

November 16, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बैंगलोर मे हुए कावेरी विवाद को देखते हुए अपने कुछ एहसासों को आपके सामने रखने की एक कोशिश की है और शायद आप भी इससे जुड़ पाए |

चारो और जलती- दहलती प्रस्थिथियो से

भयातुर सा हुआ हु में..

हाँ! डरा हुआ हु मैं ..

 

लेके नाम रब का और साथ सब का

युही अड़ा हुआ हु मैं .

हाँ! डरा हुआ हु मैं ..

 

हादसा पहली बार नहीं, देखता हर बार हु मैं

पहली महत्बा अपने पे बीती है शायद

इसीलिए भरा हुआ हु मैं

हाँ! डरा हुआ हु मैं ..

 

माथे पे जो शिकन है उसे छुपाये

देखने को वो हर दाव उसका

आँखों से आँखे मिलाये यही खड़ा हुआ हु मैं

हाँ! डरा हुआ हु मैं ..

 

माहौल मैं ऐसे , उस माँ का अपने बच्चे को सीने से लगाने

के सुख को देख तरा हुआ हु मैं

हाँ! डरा हुआ हु मैं ..

 

देख के रोष इन मदहोश प्रदर्शनकारियों का

उनकी आँखों मैं जलती चिंगारियों का

उनकी आवाज़ों से झलकती नाशादीओ का

आज एक मोहरा बना हुआ हु मैं .

और वही खुद के कहे अनकहे विचारो के

इरतेआशो से घिरा हुआ हु मैं .

हाँ! डरा हुआ हु मैं ..!!

हाँ! डरा हुआ हु मैं ..!!