किनारे रहते है लोग मेरी मझंधारों से

December 22, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई नहीं जानता ख्वाहिशें मेरी
अनजान है सब मेरे ख्वाबों से
मेरे अश्कों को पानी समझती है दुनिया
किनारे रहते है लोग मेरी मझंधारों से

न तुम जी पाये, न मैं जी पायी

December 10, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत सारी बातें है जो कहनी थी
बहुत कुछ सुनना था तुमसे
मगर कुछ न तुमने कहा
न मैं ही कुछ बोल पायी
जिंदगी गुजरती गयी चंद लम्हों में बटकर
न तुम जी पाये, न मैं जी पायी|

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