बाबुषा कोहली के साथ एक शाम

February 12, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बाबुषा कोहली के साथ एक शाम

बात ये 2017 की थी
मैं साहित्य की साइटें खोज रहा था
गूगल को खूब टटोल रहा था
मिली मुझे फिर इसमें सफलता
अच्छी रचनाओं का था उसमें छत्ता
रसास्वाद करते करते
अच्छे लेखकों से मिलते मिलते
बाबुषा कोहली का पेज फिर आया
प्रेम गिलहरी दिल अखरोट
पूरा पढ़ने से रोक न पाया
इच्छा हुई आगे बढ़ने की
उनको शुभकामनाएं देने की
सोचा थोड़ी सी चर्चा भी होगी
बहुत सी बातें सीखने को मिलेगी
तभी वहां उनका नम्बर पाया
व्हाट्सएप्प बधाई संदेश भिजवाया
उत्साह को मेरे मिली उड़ान
इंतज़ार में था मैं निगाहें तान
पर इंतज़ार न ज्यादा करना पड़ा
उधर से मैसेज तुरंत गिर पड़ा
बोली ये अति निजी नंबर है
इसपर न कोई चर्चा होती है
शब्दों में उनके था गुमान
हो गया था मैं तब हैरान
मैंने भी तब उनको सुनाया
नम्बर सार्वजनिक फिर क्यों कराया
आप सम्मान डिज़र्व नहीं करती हैं
मानता हूं, मेरी ही गलती है
यह कहकर मैंने फोन रख दिया
पर तुरन्त ही मेरा फोन बज गया
उधर से एक गुंडा धमकाने लगा
माफीनामा के लिए डराने लगा
उस शाम हमको समझ में आया
नारी सशक्तिकरण की माया।

तुम निश्चित ही सम्मान की हकदार होती पद्मावती

January 31, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम निश्चित ही सम्मान की हकदार होती पद्मावती

तुम निश्चित ही
सम्मान की हकदार होती पद्मावती
बशर्ते
तुमने सीता और अहिल्या की बजाय
द्रौपदी का अनुसरण किया होता
रानी झांसी की तरह लड़ा होता
माना कि नहीं थे तुम्हारे पास
पांडव जैसे अजेय तीर
माना कि नहीं थीं तुम
रानी झांसी जैसी वीर
पर यौवन तो था न तुम्हारे पास पद्मावती
जिसने राजा रतन सिंह को भरमाया था
जिसने खिलजी को ललचाया था
इसी यौवन रूपी अमृत को
विष में बदलती
खिलजी को इसी शस्त्र से कुचलती
तुम कैसे भूल गई अपने इस ब्रह्मास्त्र को
तुम कैसे भूल गई अप्सराओं के इतिहास को।

माना, तुम्हें भय था
यौन शोषण और बलात्कार का
माना, तुम्हें भय था
इतिहास के तिरस्कार का
पर इस नज़र से भी सोचना था पद्मावती
देश से ऊपर नहीं होता कोई व्यक्ति
फिर दर्शन भी तो यही कहता है
शरीर से बढ़कर आत्मा की महत्ता है
तुम खुद भी तो सोचती
जब शरीर नष्ट होता है
आत्मा परलोक में, कर्म इहलोक में रहता है।

तुम ही कहो अब, कैसे तुम्हारा गुणगान करूँ
तुम ही कहो अब, कैसे तुम्हारा सम्मान करूँ।

पहचान

January 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

पहचान

बड़ी कोशिशें की
खुद को जानने की
पहचानने की
ज्ञानियों से चर्चा की
पोथियाँ पढ़ी
ध्यान लगाया
पर आज जब
बाजार गई
तो समझ आया
कि मैं
ब्लाउज और
पेटीकोट हूँ
इससे अधिक
कुछ नही

वर्जिन

January 23, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

वर्जिन

मैं वर्जिन हूँ

विवाह के इतने वर्षों के पश्चात् भी

मैं वर्जिन हूँ

संतानों की उत्पत्ति के बाद भी।

वो जो तथाकथित प्रेम था

वो तो मिलन था भौतिक गुणों का

और यह जो विवाह था

यह मिलन था दो शरीरों का

मैं आज भी वर्जिन हूँ

अनछुई, स्पर्शरहित।

मैं मात्र भौतिक गुण नहीं

मैं मात्र शरीर भी नहीं

मैं वो हूँ

जो पिता के आदर्शों के वस्त्र में छिपी रही

मैं वो हूँ

जो माँ के ख्वाबों के पंख लगाये उड़ती रही

मैं वो हूँ

जो पति की जरूरतों में उलझी रही

मैं वो भी हूँ

जो बच्चों की खुशियों के पीछे दौड़ती रही।

मैं अब वर्जिन नहीं रहना चाहती

मैं छूना चाहती हूँ खुद को।

सुनो अमृता!

January 22, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुनो अमृता!

सुनो अमृता!
अच्छा हुआ
जो तुम लेखिका थी
क्योंकि अगर तुम लेखिका न होती
तो निश्चित तौर
तुम्हें चरित्रहीन और
बदलचलन की श्रेणी में रखा जाता।

अच्छा हुआ तुम असाधारण थी
क्योंकि साधारण स्त्रियों की ज़िंदगी में
तीन-तीन पुरुषों का होना
वैश्यावृत्ति माना जाता है

अच्छा हुआ अमृता
तुम बोल्ड थी
इसीलिए तुम्हारे मुंह पर
किसी ने कुछ न कहा
किन्तु यह भी सत्य है
आज इमरोज की कामना करने वाली
कोई भी स्त्री अमृता बनना नहीं चाहेगी
क्योंकि दहलीज़ों को लांघना
कोई मज़ाक नहीं है।

वह बच सकती थी!!!

January 19, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

वह बच सकती थी!!!

वह बच सकती थी
अगर वह चिल्ला सकती
उस दिन जब खेल खेल में
किरायेदार अंकल
उसे गोद मे उठा दुलारने लगे
और वह दुलार जब तकलीफदेह होने लगा
तब वह अगर चिल्ला पाती
तो वह बच सकती थी
संभवतः उसे पता ही नहीं था
कि चीख भी एक अस्त्र है

वह बच सकती थी
बार-बार अतिक्रमित होने से
अगर वह कहना जानती
उस दिन जब देर रात
घर वाले अंकल की उंगलियां
उसके अंगों पर
भयंकर तांडव करने लगीं
वह रोक सकती थी यह तांडव
अगर वह कह पाती
संभवतः वह नहीं जानती थी
कि कहना एक संजीवनी है

वह बच सकती थी
अगर उसे पढ़ाया गया होता
शरीर विज्ञान
ताकि वह समझ पाती
विभिन्न स्पर्शों का अंतर

खैर, उसकी छोड़ो
तुम तो जानती हो न बिटिया
चीखना, कहना और
स्पर्शों का अंतर?

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