Vandaana
भारत माता
August 9, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
भारत माता
सिसक रही है भारत माता, आॅचल भी कुछ फटा फटा है
चेहरे का नूर कहीं नहीं है,घूंघट भी कुछ हटा हटा है।।
क्या कारण है, सोचा है कभी? क्यों माॅ इतनी उदास है
गुलामों सी सहमी खडी, जब आजादी उसके पास है।
पहले चढते थे शीश सुमन, लहू से तिलक हो जाता था
सफेद आॅचल माॅ का तब लाल चूनर कहलाता था
आॅखों से बहती थी गंगा जमूना, की पावन अमृत द्यारायें
चरणों पे झुककर हिमाचल मस्तक रोत नवाता था।
बोते थे बीज चाॅदी के खेतो में किसान
सोने की फसल लहलहाती थी
पसीने की बूदें मिटटी में गिर
नदिया की द्यार बन जाती थी
अफसोस! मगर आज नही है
खेतों में वो हरियाली
चिडियों की चहचहाट नहीं है,न फूलों कीी है ूुुफूलवारी
अपनों के खून से सींच रहें सब फसले अपनी अपनी
कहीं जमीं पे दबी है जाति,कहीं दबे हेेै द्यर्म असहाय
कहीं होठों पे लगे हैं ताले, कहीें मुठी में बंद आवाजें
ताजों को कुचल रहे पाॅवों तले कुछ सिरफिरे
माॅ बहनों की लाजो को भी चौराहे पर खींच रहें
नाच रही है होके नग्न आज हैवानियत गली गली
मेरे भारत की इन गलियों में आजादी तो कहीं नहीं?
सोचो…..क्या सोचते होंगे, देषभगत जो चले गये
अपने लिये कुछ न मांगा, झोली तुमहारी भर गये
भ्रश्टाचार, अत्याचार, अनाचार..क्या उनके सपने थे
एक एक सब टूट गये वो, कभी लगते जो अपने थे।
ऐसा ही कुछ होता रहा तो वो दिन फिर दूर नही
ज्ंजीरे फिर गुलामी की पांवों की झांझर होंगी
लहू टपकेगा अष्कों से, होठों पे खामोशी की चाद्धर होगी
सोनचिरैया लुटीपिटी कहीं सिसकियाॅ भरती हेाग
बंजर मुरझायी आस को तकती तब ये द्यरती होगी।
तब न कहना मुझकेा तुम, मैंने आगह नही किया
अरे….इस आजादी को बचा सकॅू…
उसके लिये क्या क्या मेैने नहीं किया
अपने अद्यिकारों के मान की खातिर सडको तक पर जा बैठ
भूख उतार रख दी किनारे, अनशन पर हम आ बैठे
द्यरना दिया,आवाज लगायी,इस गूंगी बहरी सरकारो को
अफसोस मगर कहीं से कोई जबाबा न आया
थक हार के हमने अपना फैसला तब ये बतलाया
कुछ ओर नही तुम कर सकते तो, इतना तो कर दो
हमें संभालने दो राज ये, सिंहासन खाली कर दो।
सिहांसन खाली कर देो।……….
आओ साथियों मिलकर आज ये संकल्प उठा ले
जहाॅ छिपा है रामराज्य, उंगली पकड उसे बुला लें
माना डगर मुष्किल है,पर नामुमकिन नही
ऐसा कौन काम है, जो सेाचे हम ओैर कर न जायें
जयहिंद।
व्ंादनामोदी गोयल फरीदाबाद,
एक शहीद का खत
August 9, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
एक शहीद का खत…..
‘माॅ मेरे खत को तू पहले आॅखों से लगा लेना
चूमना होठों से इसे फिर आॅचल में छिपा लेना।’
कि…..
बेटा तेरा आज अपने कर्तवय से हट गया
युद्ध बाकि था अभी और वो मर गया।
पूछे्गे बाबूजी जब क्या किया मेरे लाल ने
कह देना बाकि हेै अभी कुछ सांसे बाल में
ऐसा पूत नही जना मैंने जो पीठ दिखा आ जाये
मरेगा सौ मार कर, नही ंवो, जो मेरा दूद्य लजा जाये
सीने पर खायेगा गोली, छाती पे तमगे होगें उसके
आयेगा जब लोैट कर तिरंगे तक सब झुके होगे।
दूद्य को तेरे माॅ मैने पानी न होने दिया
रखा आॅखों के सामने दुष्मन को डराकर
लडा रहा आखिरी दम तक आॅखों को न सोने दिया।
हाॅ, मुझे अफसोस इसका, छोड जल्दी जा रहा
पर देखना तू माॅ, लौट कर फिर आ रहा
फिर कोई बेटा तेरा सरहद पर खडा होगा
तनी होगी छाती वतन के लिये अडा होगा
आउॅगा जब लिपटकर माॅ तिंरगे में मैं द्यर
देखना अश्कों से किसी के रंग न तिरंगे का छूटे
बहन छोटी है अभी,बहला देना,समझाना न रूठे
बाॅद्यें राखी मुस्करा के मुझको, कोई रस्म न छूटे
हाथ खाली है मगर दुआ देकर जा रहा हॅू
तक न सके कोई दुष्मन उसे कि……
उनको सजा देकर जा रहा हॅू।.
कहना मेरी बहना को याद मुझको ही न करे
और भी वीर खडे युद्ध में, दुआ उनके लिये करे
जाने कौन किस रूप में अपनो से जाकर मिलेगा
हॅसेगा रूबरू या तिंरगा सबकी गाथा कहेगा।
भाई तो नादां है माॅ, गुस्से में उबल जायेगा
रोयगा, द्योयेगा लेकिन फिर खुद ही संभल जायेगा
उसको उसकी जिम्मेदारी का तुम अहसास करवाना
देष पुकार रहा उसको बार बार याद दिलाना
बतलाना कैसे उसके भाई ने युद्ध किया था
आॅखों मे डाल आॅखें सीना दुष्मन का छलनी किया था
डर गये थे कैसे सारे उसको सब बतलाना तुम
और भी छिपे इद्यर उद्यर कुछ ये समझाना तुम
कहना, जाकर मैदान में कसम आखिरी निभाये वो
जेैसे आया भाई लौटकर, वैसे ही द्यर आये वो।
अब तुझको क्या कहकर माॅ मै बहलाउ।
बहाना न अष्कों को अपने बस यही समझाउ
तू तो भारत माॅ मेरी, तुझको क्या बतलाउॅ
एक पूत गया जो तेरा कल दूजा आ जायेगा
झुकने न देगा शीश तेरा ला इतने शीश चढायेगा
तिलक करेगा दिन रात तुुझे वो लहू से अपने
रंग चुनर का माॅ तेरे कभी फीका न होने पायेगा।
लगा छाती से अपने माॅ बस मुझे विदा कर दे
हर बार मरूॅ वतन के लिये , बस यही दुआ कर दे
ये आखिरी खत मेरा, आखिरी सलाम तुझको
मिल रहा मिटटी में वतन की, ये आखिरी पैगाम तुझको
लौट कर गर फिर कभी माॅ तेरे आॅगन में आया
फिर करना तैयार मुझे तू वतन पर मिटने के लिये
कलम देना हाथ में वंदे मातरम लिखने के लिये
लहू में मेरे तू फिर देशभकित का जोश देना
तिरंगे से करूॅ मोहब्बत , कुछ ऐसी सोच देना
रह गये जो अधूरे आकर ख्बाब वो सब पूरे करूॅ
जीउॅ तो जीउॅ वतन के लिये आखिरी दम तक
मरूॅ जब भी कहीं तो मरूॅ रख यही ख्बाहिश लब पर
मैं रोउॅ, मेै हसॅू मेरी आॅखों में बस वतन हो
मरूॅ जब भी कभी, तिर्रगा ही कफन हो
तिरंगा ही कफन हो, तिरंगा हर कफन हो।
वंदना मोदी गोयल,फरीदाबाद