तू ख़्वाब सी है ..

August 22, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुबह की धुप होकर गुज़री हो,
जैसे,
तेरी आँखों से।
चेहरे पर गिरे तेरे बाल,
पत्तों ने मुहब्बत सी कर ली हो
जैसे शाखों से।
रोशनियों ने कभी जैसे अंगड़ाई ली हो
तेरे हाथों में
और वक्त जैसे कभी उलझ सा गया हो
तेरी बातों में।
मै हकीकत सा हूँ
तू ख़्वाब सी है
मै सवाल सा हूँ
तू जवाब सी है।
गर मिल जाए तू कभी……
अँधेरे के इस तालाब में;
शायद!
कि सूरज कोई मद्धम सा खिल जाए एक और
फिर शायद उम्र भर
लम्हे सब एक दूसरे को रोशन करें।
योगेश शर्मा

और ख़्वाब कई….

August 12, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी अनजान बीहड़ में
सुर्ख़ पत्तों से ढंका,
एक लम्बा और संकरा रास्ता….
बहुत दूर से आता हुआ
शायद अनंत से,
खैर!
पंहुचता तो होगा ही कहीं।
या फिर,
चलो देखते हैं आज
चलकर ..
पत्तों से छनती हुई धूप में
महज़ एक रास्ते भर को ही नही,
इस सूरज को भी,
जिसे प्रबुद्ध कहते हैं सभी, हमसफ़र बनाकर
बस अभी,
चलकर इस रास्ते पर…
ढूँढ लेंगे किनारा ख्वाबों का कोई
समतल सा।
जहाँ बुन सकें तेरी मेरी आँखें
और ख्वाब कई।

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