अल्फ़ाज़ हैं कुछ…

आजकल अल्फ़ाज़ हैं कुछ बिखरे- बिखरे
कितने भी समेंटूं गज़ल नहीं बनती।

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कभी बादलों से

कभी बादलों से कभी बिजलिओं से बनती है सरगम कलकल बहते पानी चलती हवाओं से बनती है सरगम इठलाती घूमती बेटियां होती झंकार बनती है…

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ग़ज़ल

“ हद से बढ़ जाए कभी गम तो ग़ज़ल होती है । चढ़ा लें खूब अगर हम तो ग़ज़ल होती है ॥“ इश्क़ है—रंग ,…

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