“कभी यूं भी आ”!!

गज़ल =”कभी यूं भी आ”
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कभी यूं भी आ मेरी आंख में
मेरी नजर को खबर ना हो,
मुझे एक रात नवाज दे कि
फिर ‘शहर'(सुबह) ना।

अंशुमाली में तेरी ही आरजू रहती है
मिल जाए जन्नत की उम्र हुकूमत,
फिर भी तेरी ही आरजू रहती है।
कभी यूं भी आ मेरी आंख में,
मेरे अपनों को खबर ना हो।
मुझे एक रात नवाज दे,
कि फिर शहर (सुबह) ना।

दास्तान ए मोहब्बत जब भी
सुनाती हूं किसी को,
सबकी आंखों में एक चमक
दिखाई देती है।
कोई देख ना ले तुझे मेरी आंखों में,
बस यही बात खटकती है।

कभी यूं भी आ मेरी आंख में कि,
मेरे सपनों को खबर ना हो।
मुझे एक रात नवाज दे कि,
फिर शहर (सुबह) ना हो।

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