
गाथा आजादी की
लहू के हरेक बूँद से लिखी हुई कहानी है I
मेरे हिन्द की आजादी की गाथा जरा निराली है II
विश्वास की नदियाँ यहा, निश्छल सा प्यार था कभी
रहते खुशी से सब यहा, न द्वेष लेशमात्र भी
कुछ धूर्त आ गए यहा, कपटी दोस्त की तरह
इस देश को बेच दिया, हृदय हीन गुलामो की तरह
कैद कर दिया हमें अपने ही परिवेश में
कुंठित हुआ है जन जन ,देखो आज इस तरह
जिस्म पे हुए हरेक जुल्म की निशानी है I
मेरे हिन्द की आजादी की गाथा जरा निराली है II
यत्न है मेरा यही, रहो स्वतंत्र तुम विहारती
इस तन को भी मिटा गए खातिर तेरे माँ भारती
कहीं जो फिर इस जिस्म में, रूह को सजानी हो
आरजू जो है जीने की, इस हिन्द में जगानी हो
कभी हो सके ये तो है सौभाग्य मेरा
कि फिर तेरे लिए वतन, कुर्बाँ मेरी जवानी हो
कलमो के नित रूदन से अंकित हुई कहानी है I
मेरे हिन्द की आजादी की गाथा जरा निराली है II
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Simmi garg - August 15, 2016, 1:08 pm
बहुत खूब
Himanshu - October 18, 2016, 2:05 pm
सहृदय आभार
Neelam Tyagi - September 14, 2016, 12:34 am
Nice
Himanshu - October 18, 2016, 2:04 pm
धन्यवाद आपका
Anjali Gupta - September 30, 2016, 5:23 pm
nice poem 🙂
Himanshu - October 18, 2016, 2:03 pm
धन्यवाद आपका
राम नरेशपुरवाला - October 28, 2019, 10:53 am
Wah
Kanchan Dwivedi - March 8, 2020, 12:00 am
Nice
Satish Pandey - July 31, 2020, 8:32 am
जय हिंद
Abhishek kumar - July 31, 2020, 10:02 am
👏👏