जब से अलग लिखनें लगे..
जब से अलग लिखने लगे
हम सस्ते में बिकने लगे
मौजें अलग होने लगीं
पंख भी गिरने लगे
बहरूपिया मन मोहकर
बन बैठा है मेरा पिया
हिय को अलग ना कर सके
सपनें जुदा होने लगे
स्पर्श जब उनका मिला
एक पुष्प-सा मन में खिला
ना रह गए हम पहले से
बस कुछ अलग दिखने लगे
कल्पना की चाबियां
खो गईं हमसे अभी
पैर भी टिकते नहीं
अब हाथ भी हिलने लगे
यहीं तक सफर था अपना
जा रही हूँ लौटकर
पहले दुःखता था हृदय
अब छाले भी दुःखने लगे !!
अतिसुंदर रचना
धन्यवाद
“ना रह गए हम पहले से, बस कुछ अलग दिखने लगे ”
वाह, दिल को छू गई कविता….. बहुत सुंदर कविता है प्रज्ञा जी ।
धन्यवाद समीक्षा हेतु
स्वागत है
Nice Poetry
Thanks
“पहले दुःखता था हृदय
अब छाले भी दुःखने लगे !!”
बहुत सुंदर पंक्तियां
बहुत सुंदर कविता
आभार
अतिसुंदर प्रस्तुति
अन्त की पंक्तियां और भी सुन्दर
आभार
कल्पना की चाबियां
खो गईं हमसे अभी
वाह क्या बात है, बहुत सुंदर
आभार
Nice
धन्यवाद
सरल शब्दों से निर्मित आपकी कविता तारीफ़ के काबिल है।
Thanks