दीपक की भी एक सीमा है
रात भर दीपक जला,
भोर होने लगी तो बोला,”अब मैं चला”
मैंने कहा और जलो, अभी अंधियारा बाकी है,
“मेरी भी एक सीमा है”, कह कर वो मुस्कुराया
उसकी अर्थपूर्ण मुस्कुराहट में,
एक संदेशा मैंने पाया…
जिसकी जब जितनी ज़रूरत हो,
वह उतना ही मिल पाता है।
उसे पता है, सूरज के आगे उसका क्या काम,
वो चतुर है, उसे समझ है,
उसकी भी एक सीमा है,।
ये उसको भी है भान।
Very nice sister g
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
बहुत अच्छी कविता है।
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
अच्छी रचना
प्रेरक भाव
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
सुन्दर
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
बहुत ही अच्छी
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
Nice
Thank you neha ji 🙏
दीपक ‘तत्सम ‘ और सूरज “तदभव ” के माध्यम से लक्ष्यार्थ का वर्णन हुआ है, बहुत ही सुन्दर. दीपक को सूरज के सामने अपनी सीमा का भान है, वाह
प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार सतीश जी🙏
उम्दा।
अच्छी शब्दावली का प्रयोग
Wah waahh
Shukriya ji
बहुत खूब
Thank you so much Piyush ji 🙏