मैं आर देख रहा था, मैं पार देख रहा था…
मैं आर देख रहा था, मैं पार देख रहा था,
बंद लतीफों की खड़े -खड़े मल्हार देख रहा था,
सोचा था तंग आकर लिखूंगा ये सब,मगर ये क्या,
कागज के टुकडों में दफन विचार देख रहा था,
मैं आर देख रहा था, मैं पार देख रहा था,
पग भारी है उनके, जिनके किस्सों की भरमार देख रहा था,
मैं यहीं कहीं लड़की का चलता-फिरता बाजार देख रहा था,
कोशिश मत करो तुम सरकार-ए-आलम बात छुपाने की,
जब तुम्हारी ही कली को, बागों में शर्मसार देख रहा था,
मैं आर देख रहा था, मैं पार देख रहा था,
मैं भारत की गरीबी पर, कुछ प्रचार देख रहा था,
नेताओं की फैलती महामारी का प्रसार देख रहा था,
सोचा था आज ही मेरा मेरा भारत नोटों में खैलेगा,
मगर वतन की जेब में छुपी कलदार देख रहा था,
मैं आर देख रहा था, मैं पार देख रहा था,
भारत माँ की इस धरती पे खूनी त्योहार देख रहा था,
कश्मीर में फैला आतंकी पलटवार देख रहा था,
हे माँ! कैसे करूँ अब मांग तेरी पूरी तेरी जमीं पे,
मैं हर विधवा का खून भरा श्रंगार देख रहा था,
मैं आर देख रहा था, मैं पार देख रहा था
बंद लतीफों की खड़े-खड़े मल्हार देख रहा था,
मैं आर देख रहा था, मैं पार देख रहा था…………..
—–:कपिल पालिया “sufi kapil “
(स्वरचित)
मो.न.— 8742068208, 7023340266
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Vedprakash singh - August 22, 2016, 1:53 pm
बहुत सुन्दर
राम नरेशपुरवाला - October 28, 2019, 11:20 am
Good
Kanchan Dwivedi - March 7, 2020, 11:59 pm
Good
Satish Pandey - July 31, 2020, 12:57 am
वाह
Abhishek kumar - July 31, 2020, 10:00 am
👏👏