“मैं स्त्री हूं”
सृष्टि कल्याण को कालकूट पिया था शिव ने,
मैं भी जन्म से मृत्यु तक कालकूट ही पीती हूं।
मैं स्त्री हूं।
(कालकूट – विष)
मचा था चारों ओर घोर त्राहिमाम जब,कोई ना था बचाने को,
तब तुम्हें बचाने वाली दुर्गा – महाकाली हूं।
मैं स्त्री हूं।
मैं जटाधीश की जटाओं से बहने वाली हूं,
मैं सगर के पुत्रों को मुक्त कराने वाली हूं,मैं गंगा हूं,
मैं स्त्री हूं।
है राम अगर मर्यादा पुरषो्तम तो,
मैं भी तो मर्यादा की देवी हूं,मैं सीता हूं,
मैं स्त्री हूं।
मैं सदा अपना पतिव्रत धर्म बचाने वाली हूं,
मैं तप से त्रिदेवो को भी शिशु बनाने वाली हूं, मैं अनुसुइया हूं,
मैं स्त्री हूं।
मैं राम कृष्ण को जनने वाली हूं,
मैं माता हूं, मैं बहन हूं, मैं वंश बढ़ाने वाली हूं,
मैं स्त्री हूं।
मैं हर दुख को सहने वाली हूं,में राधा हूं,
मैं सदा भक्ति प्रेम करने वाली हूं, मैं मीरा हूं,
मैं स्त्री हूं।
मैं काल से सत्यवान को बचाने वाली हूं, मैं सावित्री हूं,
मैं सदा शौर्य दिखलाने वाली हूं,में लक्ष्मीबाई हूं,
मैं स्त्री हूं।
मैं सम्मान की खातिर जीने मरने वाली हूं,
मैं चित्तौड़ का जौहर दिखलाने वाली हूं, मैं पद्मिनी हूं,
मैं स्त्री हूं।
में सर्वस्व त्याग समर्पण करने वाली हूं ,
में सदा सहनशीलता रखने वाली हूं,
मै स्त्री हूं।
मैं कदम से कदम मिलाकर चलने वाली हूं,
मैं जरूरत पड़ने पर पिता का अंतिम संस्कार भी करने वाली हूं,
मैं स्त्री हूं।
मैं दयावान हूं,में बुद्धिमान हूं, मैं किसी पुरुष से कम नहीं ,
फिर भी अपने अपने सपनों को कुचलने वाली हूं,
मैं स्त्री हूं।
सब कुछ अपना न्योछावर करके भी,
बस प्रेम चाहने वाली हूं, मैं संतोषी हूं,
मैं स्त्री हूं।
मैं तेरी हर मुश्किल हर लेने वाली हूं,
मैं मयंक जनने वाली हूं ,
मैं स्त्री हूं।
✍️✍️मयंक “उषा” व्यास✍️✍️
अतिसुन्दर
भावपूर्ण चित्रण
मयंक जी आपकी कविता की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है ,बहुत ही सुंदर तरीके से अपने प्राचीन ग्रंथों व कथाओं के माध्यम से स्त्री को श्रेष्ठ सिद्ध किया है, सच में नारी महान होती है
बहुत बहुत आभार।🙏
बहुत ख़ूब मयंक भाई, स्त्री के मन – मस्तिष्क के बारे में बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण।very nice.
बहुत बहुत आभार🙏
Atisunder