सुनते आए हैं…..
सुनते आए हैं –
अपनों का पर्व है होली
मेरे आंगन जली होलिका
मैं ही पंडित, मैं ही पूजा
मैं ही कुंकुम, अक्षत औ” रॊली;
सूनी गलियां, सूने गलियारे,
सूने हैं आंगन सारे
कौन संग मैं खेलूं होली!
सुनते आए हैं –
रंगों का पर्व है होली
सुबह गुलाबी नहीं रही, अब
सांझ नहीं सिंदूरी,
धरती से रूठी हरियाली
बेरंगा है अंबर भी;
रंगों की थाल सजी, पर
कौन रंग से खेलूं होली!
सुनते आए हैं –
खुशियों का पर्व है होली
हर चेहरे पर भय-आशंका
हर माथे पर काला टीका,
थके हुए तन, हारे से मन
सोच समझ पर पड़ा है ताला ;
संदेहों के जालों में
घिरा हुआ है हर आदम,
कौन ढंग की खेलूं होली!
सुनते आए हैं –
अपनों का पर्व है होली !
रंगों का पर्व है होली !!
खुशियों का पर्व है होली !!!
0य103य2020
डॉ. अनु सोमयाजुला
Nice
Bahut khoob
Nice
Nice 👏👏
Nice
Nyc