हाय रे आज के इंसान
कितने बदल गये है इंसान।
बेच कर अपना ईमान।।
सच्चाई से कोस दूर भागे।
झूठ के बीज बोये बेईमान।।
बुरी नजर वाले का मुंह है गोरा।
नेकी करने वाले को बना दिए हैवान।।
झूठ के पर्दे में छूप कर।
बनते है आज के दयावान।।
अधर्म पे चलने वालों को।
गर्व से कह गए हम आज का ‘महान’।।
Nice
Thanks
‘झूठ के बीज बोये बेईमान’ के रूप में अनुप्रास का सुंदर प्रयोग हुआ है। कविता में क्षेत्रीय बोली का सहज प्रयोग, ‘नेकी करने वाले को बना दिए हैवान’ में ‘दिए’ क्षेत्रीय रूप में है। बहुत सुंदर भाव हैं।
धन्यवाद सर।
आज के परिप्रेक्ष्य को दर्शाती बहुत सुंदर रचना
शुक्रिया।
व्यंग्यात्मक शैली और वर्तमान में जो हो रहा है उस पर शानदार कटाक्ष
“बुरी नजर वाले का मुंह है गौरा
नेकी नेकी करने वाले को बना दिए हैवान”
बहुत ही बेहतरीन!
बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति! बधाई हो! 😊
धन्यवाद मोहन सर।
बेहतरीन
Nice lines
वाह
अनुप्रास अलंकार के साथ व्यंग भी किया है कवि ने इस कारण शिल्प बहुत मजबूत है तथा भाव पक्ष और कला पक्ष भी सराहनीय है