उस माँ का दर्द कौन जाने..!!
उस माँ का दर्द कौन जाने !
जो अपने फर्ज के लिए
अपने दुधमुहे बच्चे को
घर छोंड़कर जाती है..
वो पुलिसकर्मी है अपनी ड्यूटी
खूब निभाती है…
कभी छोंड़ती मायके में
कभी ससुराल में छोंड़कर जाती है..
दिल को पथ्थर बनाकर
ममता से मुंह मोड़ती है
देश के नागरिकों की रक्षा
के लिए
अपने बच्चे को दूसरे के
सहारे छोंड़ती है…
कैसे बीतते हैं उसके दिन और
कैसे रात कटती है…
उस माँ का दर्द कौन जाने
जो अपने बच्चे से दूर रहती है…
नहीं लगता दिल कहीं जब
अपने बच्चे की याद आती है…
वीडियो कालिंग से वह अपने बच्चे को देख पाती है…
हंसता-खेलता अपना बच्चा
देख
माँ के चेहरे पर मुस्कान आती है…
दिल दुःखता है दूरियों से
और आँख भर आती है…
कभी-कभी नन्हे से बच्चे को
माँ ड्यूटी पर ले जाती है..
बच्चे के प्रति लापरवाही भले कर भी दे माँ
पर देश के प्रति अपना फर्ज बखूबी निभाती है..
उस माँ का दर्द कौन जाने
जो बच्चे को छोंड़कर
रो-रोकर रात बिताती है…
विशेष:-
यह कविता सभी महिला पुलिसकर्मियों और कामकाजी महिलाओं को समर्पित है…
जो अपने फर्ज के लिए अपने बच्चे से दूर रहकर अपनी ड्यूटी करती हैं…
बहुत ही ह्रदय स्पर्शी रचना है कवि प्रज्ञा जी की ।
कामकाजी महिलाओं के छोटे बच्चों को ये सब तो सहना ही होता है।
माँ भी सहती है और बच्चे भी सहते हैं । इस कविता के लिए आपको, मेरा हार्दिक धन्यवाद प्रज्ञा
बहुत बहुत आभार समालोचना हेतु गीता जी
सुस्वागतम्
बहुत खूब