एक भ्रमण स्वपन-लोक का

कभी कल्पना की गलियों में,
जब कवि-रूप में मैं चली ।
फ़िर जो देखा स्वपन-लोक में ,
उसका वर्णन करने चली ।
सुन्दर शहर है सपनों का ,
कुछ अनजाने कुछ अपनों का ।
सुन्दर-सुंदर नाम सभी के,
सबसे मैं रू-बरू मिली ।
स्नेह- प्रेम भी दिखा वहां पर ,
तारीफें भी लगीं भली ।
छम – छम मेघा बरस रहे थे ।
शीतल -शीतल पवन चली ।
कहीं – कहीं राहें रौशन थीं,
कहीं -कहीं अंधियारी गली ।
कोई पुकारे नाम मेरा,
और कोई बहन बनाए ।
कोई भाव कहे कविता के ,
कोई सुंदर सखी मिली ।
वो सुहाना स्वपन ही था,
स्वपन -लोक की थी गली ।
ऐसे मनोहर स्थान से,
कौन भला आना चाहे..
सुन्दर था पर, स्वपन ही था,
तो, मैं अपने घर लौट चली..।

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Responses

  1. वाह, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति—-
    “कोई भाव कहे कविता के ,
    कोई सुंदर सखी मिली ।
    वो सुहाना स्वपन ही था,
    स्वपन -लोक की थी गली ।'”
    कवि की सकारात्मक और बेहतरीन कृति

  2. इतनी सुन्दर समीक्षा हेतु धन्यवाद शब्द कम पड़ रहा है सर..
    🙏 आपका हार्दिक धन्यवाद एवम् आभार ।

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