एक सखी मेरी प्यारी सी
एक सखी मेरी प्यारी सी,
कोमल मन की न्यारी सी।
कभी क्रोध की अनल में तपे,
कभी स्नेह बरसाती है
कभी कहा माने चुपके से,
कभी अपनी भी चलाती है..
एक सखी मेरी प्यारी सी,
बहुत नेह बरसाती है ।
मिली मुझे वो सावन – भादों में ,
सोने सा सुंदर मन है उसका,
चारु चंद्र की चंचल किरण सी,
मेरे जीवन में, शीतल चांदनी लाती है।
वो बहुत नेह बरसाती है,
एक सखी मेरी प्यारी सी..
______✍️गीता______
वाह बहुत खूब
बहुत ही लाजवाब अभिव्यक्ति। अच्छे लोगों को मित्र भी अच्छे ही मिलते हैं। बहुत ही सुंदर कविता लिखी है, गीता जी आपने। लेखनी की इस प्रखरता को सैल्यूट
समीक्षा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका कमला जी🙏
इतनी सुन्दर समीक्षा के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी
कविता के भाव को समझने के लिए आपका बहुत बहुत आभार 🙏
आद्योपान्त अतिसुंदर सरस और सरल प्रवाह वाली उपमा अलंकार की प्रचुरता लिए कविता।
समीक्षा के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी 🙏
“मिली मुझे वो सावन -भादों में ” के भाव को जरा स्पष्ट करना।
लय बद्ध करने के लिए लिख दिया है । सावन भादों का मौसम अच्छा होता है । सवान भादों में भी बादल नेह बरसाते है वैसे ही मेरी सखी भी मुझ को स्नेह देती है तो उपमा अलंकार का प्रयोग है।
सोने सा सुंदर में अनुप्रास अलंकार भी है भाई जी। समीक्षा के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवम् आभार 🙏
सुन्दर रचना
शुक्रिया प्रतिमा जी
बहुत ही सुन्दर
आपकी यह रचना मुझे सर्वाधिक पसंद आई..
और क्या कहूं ज्यादा बोलना आता नहीं…
Thank you very very very much dear pragya.
Thanks for your lovely complement..
Welcome sister
बहुत ही शानदार
बहुत बहुत धन्यवाद आपका चंद्रा जी🙏
अरे वाह, बहुत सुंदर कविता है गीता… keep it up 👍👌
Thank you very much seema
Great Poem
Thanks allot to you sir🙏
Nice
Thank you Isha ji