शिक्षा की चौपाल
शिक्षा की चौपाल लगी
कहाँ रहे अब पढ़ने वाले।
संभावित प्रश्नों को रटकर
कागज पर हीं बढ़ने वाले।।
कई तरह के बोर्ड यहाँ हैं
हर भाषा हैं माध्यम के।
अंग्रेजी में काम करे सब
डाले अचार माध्यम के।।
होमवर्क नहीं बच्चे करते ।
शिक्षक भी न डण्डे रखते।।
शासन का जब कहना इतना
पास करे सब पढ़ने वाले।।
शिक्षा की चौपाल लगी
कहाँ रहे अब पढ़ने वाले।।
नब्बे पे उत्तान खड़े बस
झुके हुए पैंतालीस वाले।
नम्र बने बिन का विद्या
क्या करे कम चालीस वाले।।
जितना पढ़ो गुणो तुम जादा।
कामयाबी का लेकर वादा।।
जीवन सफल बनेगा तेरा
यही बड़ों का कहना है।
‘विनयचंद ‘नहीं स्वर्ण तू
पीतल भी तो गहना है।।
आत्मबल रख रे सदा सर्वदा
जीवन पथ पर बढ़ने वाले।।
हार तुम्हारी नहीं कभी है
पौरुष निज पथ गढ़ने वाले।।
युवा वर्ग को आत्म विश्वास दिलाती हुई बेहद शानदार रचना और वर्तमान की शिक्षा पद्धति पर भी अच्छा कटाक्ष है… बहुत सुंदर भाई जी
शुक्रिया बहिन
वर्तमान शिक्षा पद्धति पर व्यंग्य करती बहुत सुंदर कविता
सुन्दर अभिव्यक्ति
शिक्षा में आई विकृति पर प्रहार करती कविता। बहुत सुन्दर
सौ प्रतिशत सत्य
बहुत खूब