कटघरे में हर शख्स
कटघरे में खड़ा
है हर शख्स
आज…
कुदरत पूछ रही
है कई सवाल
आज…
काबिल है क्या
कोई हम में से
जवाब जो
दे सके
आज…
काटी वही
शाख हमने
जिस पर आराम
फरमाया था तलक
आज…
फिर भी किसी
चमत्कार की
आस लगाऐ
बैठा है मानव
आज….
करिश्मा कोई
होगा नहीं
मानव को ही
करना होगा प्रयास
आज….
मानवता का फर्ज
निभाने,प्रकृति
का कर्ज
उतारने का
वक्त आया है
आज….
बहुत सटीक वर्णन अनु…
यह सब हमारा कर्म है जो आज कुदरत आक्रोश दिखा रही है
हमें संभलना होगा
बहुत बहुत आभार प्रज्ञा
Nice
Thanks g
मानवता का फर्ज निभाने, प्रकृति का कर्ज उतारने का वक्त आया है आज,
बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद अमिता
बहुत खूब, अति उत्तम रचना
बहुत बहुत धन्यवाद जी
वाह
बहुत बहुत आभार जी
बहुत सुंदर प्रस्तुति
बहुत बहुत आभार एकता
मानवता का फर्ज
निभाने,प्रकृति
का कर्ज
उतारने का
वक्त आया है
आज….
बहुत बहुत धन्यवाद