कागज़ और कलम

कागज़,कलम की बातें सुनकर,
मैं लिखना सा भूल गई
कागज़ ने कहा कलम से,
जब तुम चलती हो मुझपे
कहो ये कैसा अहसास है,
कलम ने कहा……
हमें भी नहीं पता,
बस यही लगता है हमें
कि आप हमारे पास हैं..

*****✍️गीता

Related Articles

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. कवि गीता जी के द्वारा प्रस्तुत खूबसूरत भाव हैं। हृदयगत कोमल अनुभूति है यह। बहुत सुंदर शिल्प है।
    “कागज़ ने कहा कलम से”
    में कविता अनुप्रास से अलंकृत है। बहुत खूब

    1. इतनी सुन्दर समीक्षा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी
      कविता की सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सर 🙏

+

New Report

Close