कैसे बैठे हुए हो यौवन

यूँ रास्तों में कैसे
बैठे हुए हो यौवन
क्यों बाजुओं में माथा
टेके हुए हो यौवन।
क्या कोई ऐसा गम है
या कोई ऐसी पीड़ा,
जिसकी तपिश से इतने
मुरझा गए हो यौवन।
यह बात सुनी तो
उसने उठाई आंखें,
पल भर मुझे निहारा
देखी सभी दिशाएं।
चुपचाप सिर झुकाया
आंसू लगा बहाने
मैं मौन हो खड़ा था
सब कुछ समझ रहा था।
कहने लगा सुनो तुम,
यौवन बता रहा है
निस्सार है ये जीवन
हार है ये जीवन।
बचपन में आस थी कुछ
सपने सजे थे अपने,
सम्पूर्ण यत्न करके
जीवन संवार लेंगे।
जलता चिराग लेकर,
मंजिल को खूब खोजा
फिर नही मिला न हमको
पाथेय इस सफर का।
जीवन जलधि है आगे
दुर्लंघ्य है कठिन है
विश्रांत से पड़े हैं
बस धूल फांकते है।
तुमने व्यथित समझ कर
उपकार ही किया है,
वरना ज़मीं पे कौन है
हम पर हंसा न हो जो।
यौवन का राग सुनकर
छाती उमड़ सी आई,
कोसा जमाना हमने
मन में सवाल आये,
जिस देश का युवा यूँ
सड़कों की धूल फांकें
उस देश की कमर कल
कैसे खड़ी रहेगी।

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Responses

  1. युवकों की बेरोज़गारी की व्यथा का इससे बेहतर चित्रण तो हो ही नहीं सकता। नवयुवकों की व्यथा समझने के लिए कवि को अभिनन्दन। साहित्य ही समाज का दर्पण होता है,आपकी रचना उसका प्रतिबिंब ही है।

    1. इस बेहतरीन समीक्षा हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद, कविता के साथ साथ आपकी लेखनी में अदभुत समीक्षा शक्ति विद्यमान है। बहुत खूब

  2. बहुत सुन्दर कविता है
    पढ़ के लगा जैसे मेरे हृदय की वेदना हो..
    हम युवाओं की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा
    रोजगार के नाम पर बस पकौड़ा तलो रोजगार ही है

    1. बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी, आप एक होनहार युवा हैं। साहित्य की जानकर और प्रतिभाशाली स्तरीय कवि हैं। आप जरूर जीवन में उच्च लक्ष्य हासिल करें, आपके मार्ग में स्वतः पुष्प बिछे रहें। आपके द्वारा मेरी इस कविता की जो सुन्दर समीक्षा की गई है, उसके लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।

      1. धन्यवाद भाई
        69000 हजार भर्ती ही लटका दी
        तो रोजगार कहाँ से मिलेगा मुझे
        हर भर्ती कोर्ट में है

      2. बिल्कुल ठीक कहा प्रज्ञा बहन, यह अत्यन्त चिंता का विषय है।
        बेकारी ने ऐसे भटकाये
        चिन्ता भरे सोच ने खाये,
        घर-घर में कुछ इसी तरह के
        यौवन के किस्से बन पाये।

  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति
    वास्तव में वर्तमान में बहुत बुरा हो रहा है युवाओं के साथ, सरकारे आती है ,जाती हैं; बस अपना उल्लू सीधा कर पाती है!
    कोई इंजीनियर बनना चाहता है तो कोई अध्यापक तो कोई डॉक्टर तो कोई ऑफिसर और कितनी मेहनत करके वे डिग्रीयां हासिल कर भी लेते हैं मगर उनके सपनों के विपरीत उन्हें आत्मनिर्भर बनने का पाठ पढ़ाया जाता है, पकोड़े की दुकान ही करनी होती तो इतनी मेहनत से पढ़ाई करने की क्या जरूरत थी। बेरोजगारी पर
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

    1. सही कहा सर
      इन्हें शायद यह नहीं पता कि जिस दिन युवा सड़क पर आ गया
      इनका रहना मुश्किल हो जाएगा..

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