ग़ालिब
कविता- गालिब
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कवि जागो
लेखक जागो,
जागो जग के
शायर सब ,
रोयेंगे कल
यदि आज नहीं
जागे हम|
प्रकृति हमारा
खंडहर हो रहा
कल कहाँ से
उपमा लायेंगे
जब फूल नहीं
बागों में,
सुगंध नही
फूलों में,
निर्मल जल की
आस नहीं,
बोतल से-
मिटती सबकी
प्यास नही|
सूख रही
सरिता सारी
रोती आज
धरा भी है
बे मौसम
वर्षा होती है
प्यासी धरती
रहती है।
जंगल में आग लगी
कई जीव बलिदान हुए
हो व्याकुल जल से हिरनी,
क्या लोग सभी –
सागर का खारा पानी पीएं
सावन में अब
जोश नहीं
बसंत में अब वो
फूल नहीं,
पतझड़ में
वर्षा होती है
वर्षा में अब,
वर्षा नहीं
नव कवि
‘दिनकर’ के बेटों
‘वर्मा’ के सब
बच्चें सुनो
कलम उठा
गीत बना,
क्यों चुप हो
ग़ालिब के बच्चों
आओ मिलकर सब
एक काम करें
पर्यावरण पर
हम कविता
तुम शायरी,
और कोई गीत लिखें।
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—ऋषि कुमार प्रभाकर
अति उत्तम रचना
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अति उत्तम रचना
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बहुत खूब
कवि ऋषि जी अन्य कविताओं की भांति आपकी इस कविता के भाव भी उच्चस्तरीय हैं। आपकी कविताओं में प्रेरणा की अनुगूंज अनवरत सुनाई देती रहती है।न ये कृत्रिम हैं और न ही सजावटी। अतः आपकी काव्य प्रतिभा यूँ ही निखरती रहे। खूब लिखें, आगे बढ़ते रहें, समाज को दिशा देते रहें।
पर्यावरण, नदियां जंगल और वनस्पति की चिंता में परेशान कवि की अति उत्तम रचना । भावी पीढ़ी को सुन्दर और उपयोगी संदेश देती हुईं
बहुत सुंदर और प्रेरक कविता