गुल्लक
खुशियों की गुल्लक टूट गई
जब अपनों से ही शूल मिला
विश्वास करें भी तो कैसे
जब कांटो में लिपटा फूल मिला।
सगे-संबंधियों ने मुंह मोड़ा
शायद कुछ हम मांग न ले
कहीं मिले तो ऐसे मिलते
जैसे हम पहचान न लें।
वक्त बदला तो अपने बदले
किस-किस को हम दर्द सुनाएं
चुप रहने को मजबूर हुए
शायद है किस्मत की सजाएं।
सपनों का हर धागा है टूटा
पर विश्वास है मंजिल पाएगें
बुरा किसी का कभी किया ना
तो लौटकर फिर दिन आएंगे
वीरेंद्र सेन प्रयागराज
बहुत ही सुंदर कविता है
धन्यवाद
बहुत ही उम्दा रचना
आभार
बहुत खूब
बहुत लाजवाब