जीवन कठिन हुआ जीवों का
आज धूप नहीं है
बादल छितरे हैं नील गगन में
ठिठुर रहा है जीवन
बर्फ भरी है आज पवन में।
कैसे उठूँ रजाई से,
यह ठंडक मुझे रुलाई दे
कुछ गर्मी लाने की बातें
अब कैसे मुझे सुनाई दें।
चाय हाथ में आने तक
ठंडी हो जाती है, भैया,
ऐसे में कोई छोड़ गया है
सड़कों में बूढ़ी गैया।
जीवन कठिन हुआ जीवों का
खूब पड़ रही है ठंडक,
पाले की चादर चमड़ी पर
दांत कर रहे हैं टक-टक।
मनोहारी चित्रण
ठंड का बहुत सुंदर चित्रण , सुन्दर रचना
इस रचना ने ठंड को महसूस करा दिया ।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत खूब
अतिसुंदर भाव
सुंदर रचना सतीश जी