“दो मुट्ठी आसमां”
तमाम ख्वाहिशें नहीं हैं मेरी
बस ‘दो मुट्ठी आसमां’ की ख्वाहिश है
पंख हों उड़ने का हौसला हो
और हों बेहिसाब मंजिलें
उड़ चलूं जिसमें मैं अकेली
ना हो कोई मुश्किलें..
चाहें जिस राह पर चलूं मैं
मगर सफर कभी खत्म ना हो
आसमान में चाँद-सितारे हों रौशन
नाकामयाबी का धुंधलापन ना हो….
बहुत ख़ूब बहुत सुंदर कविता
धन्यवाद
बहुत खूब, लाजवाब
Thanks
आसमां की ख्वाहिश..
उम्दा रचना
सुंदर अभिव्यक्ति ऐसे ही अच्छा अच्छा लिखती रहिए
बेहतरीन