नयन आपके
नयन आपके राह भटका रहे हैं,
जरा सा चलें तो अटका रहे हैं।
हुआ क्या अचानक उन्हें आज ऐसा
हमें देख जुल्फों को झटका रहे हैं।
इल्जाम हम पर लगाओ न ऐसे,
दिल ए द्वार वे खुद खटका रहे हैं।
दिल टूटने से दुखी हैं बहुत वे
मगर गम नहीं है, जतला रहे हैं।
Bahut khoob
सुंदर
वाह सर बहुत खूब
सुन्दर
कवि सतीश जी की श्रृंगार रस से परिपूर्ण अति सुंदर रचना ।
सुन्दर भवाभिव्यकती
वाह जी वाह
अतिसुंदर