निर्भया

कभी दिशा, कभी निर्भया,कभी मनीषा ,नन्ही बच्ची कोई,
बस नाम अलग-अलग,कहानी सबकी एक,
हर घड़ी डर का साया,
ना जाने मर्द तुझे किस बात का घमंड है छाया,
अबला होने का हर रोज एहसास करवाते हो,
मेरी जान की कीमत बस तुने इतनी-सी लगाई,
तेरी आँखों के सुकून से आगे बढ़ ना पाई,
मेरे शरीर को मांस के टुकड़े से अधिक ना समझा,
मेरी रूह में उतर जाने की तुने औकात ही नहीं पाई,
ना सीता, ना द्रौपदी चल उठ अब बन झांसी की रानी तु,
अब वक़्त नहीं गुहार का,
बहुत हुया, अब आया वक़्त खंजर हाथ में लेने का,
फिर जो होगा देखा जाएगा,
समाज यूं नहीं बदला जाएगा,
अपनी शक्ति को पहचान जरा, सब संभव हो जाएगा।

सुधार के लिए सुझावो का सवागत है।

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Responses

  1. नारी अबला नहीं है बस सचेत रहने की आवश्यकता है और अपने स्वाभिमान, हक के लिए लड़ने की..
    बहुत मार्मिक भाव

  2. आप ने सही कहा नारी अबला नही है, पर सदियों से उसे यही एहसास करवा कर दबाया जा रहा है।
    धन्यवाद प्रज्ञा

    1. जी अनू पर गलती हमारी ही है हम महिलाएं ही अपने अस्तित्व को नहीं समझ पा रही और मर्द को हद से ज्यादा तवज्जो देकर परमात्मा हमी ने बना रखा है
      जिसके कारण वह अब इंसान कहलाने के लायक भी नहीं बचे हैं…

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