यादों की परछाईं
आँखों में जब उमड़ है उठता
बीता हुआ अतीत
फिजाओं में तब गूंज हैं
उठते भूले-बिसरे गीत
एक-एक कर स्मृति में
वो पल घुमड़-घुमड़
आ आते हैं
ना जाने अब कहाँ खो गये
वो पल वो मनमीत
यादों की परछाईं जब
धुंधली पड़ जाती हैं
महक उठते हैं सपने प्यारे
तरुणाई मुसकाती है
चल देती हूँ जब मैं
मीठे लम्हों की बारातों में
विरहिणी आँखों से
पावस मचल-मचल
बह जाती है…
सुंदर
Thanks
बहुत ही भाव पूर्ण रचना है प्रज्ञा जी । बहुत सुंदर प्रस्तुति
Thanks
सुन्दर अभिव्यक्ति
Thanks
bahut hii bhawapurn rachana yado ki parchhai
आभार सर
बहुत ही सुंदर रचना