पावस बहती आंखों में…..
पावस बहती आंखों में
तुम नीर-सा बनकर आए
अविरल बहते रहे
हृदय में कितने छाले उभर आए
किंकर्तव्यविमूढ़ बने हम
तेरा साथ पाकर के
जो बन पाने को आतुर थे
वह ना हम बन पाए
मिथ्या थे वह सारे वादे
मिथ्या थी वह बातें
तेरी याद में सिसक-सिसक कर
रोती थीं मेरी रातें
पावस बहती आंखों में तुम
नीर-सा बनकर आए
अविरल बहते रहे नेत्र से
हम कुछ भी ना कर पाए ।।
सुंदर भाव अभिव्यक्ति तथा
उच्च कोटि का शिल्प भावनाओं की
कलात्मकता बहुत ही सुंदर है
तथा कविता को जीवंत बनाते हैं ।
हृदय की वेदना को व्यक्त करने के लिए
जो शब्द आपने उपयोग किए हैं वह कविता को सार्थक बनाते हैं।
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
बहुत ही सुंदर शब्दों में अपने कहा है पावस बहती आँखो में
आपने ऐसी उपमा दी है
अपने भावों को की जिसकी तारीफ करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है उच्च कोटि की समाहार सकती है आपकी
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बहुत-बहुत धन्यवाद मास्टर साहब आपका आप हमेशा ही मेरी उपलब्धि करते हैं ऐसे ही मेरी सराहना और गुण दोषों को बताते रहिए आपके सुझाव भी आमंत्रित हैं