मजदूर हूँ मैं
मजदूर हूँ मैं
मजबूर नहीं।
नहीं कभी चिंता
अपन रोटी की
सबका घर मैं
भरना चाहूँ।
चिलचिलाती धूपों ने जलाया,
कभी बारिश के पानी ने भींगाया।
कपकपाती ठंढी से भी लड़ना चाहूँ।।
क्योंकि मजदूर हूँ मैं।।
किसानी से कारखाना तक
अपनी सेवा का क्षेत्र बड़ा है।
अपने हीं दम पर तो
व्यापारियों का व्यापार खड़ा है।।
कर्तव्य बोध के कारण
अपनों से दूर हूँ मैं।।
सेवा धर्म है अपना
क्योंकि मैं मानव हूँ।
सेवा के हीं खातिर
कष्ट उठाऊँ न हीं श्रम का दानव हूँ।।
एक मजूरी दे ‘विनयचंद ‘
कह दे जग में नूर हूँ मैं।
मजदूर हूँ मैं।।
Nice sir ji
Thank u for your comment
Nyc
वाह
👌👌