Categories: मुक्तक
Tags: संपादक की पसंद
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गुनहगार हो गया
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
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हिन्दी गजल- वतन को बचाने चले है |
हिन्दी गजल- वतन को बचाने चले है | लगा मजहबी आग आज वो वतन जलाने चले है | भड़का सियासी चिंगारी वो वतन मिटाने चले…
सुन्दर
bahut khoob
Thank you
आये थे हम, मगर देखा ही नहीं तुमने।
अब तो हम तनहाई को गले लगाये बैठे हैं।।
Wah
बहुत खूब
Dhanyawad
बहुत ख़ूब
Shukriya bahin
वाह पंडित जी।
Thank you
क्या बात ह
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ, जय हो
वाह! वाह!