मारी नहीं पिचकारी(होली पर )
गाली न दे मुझे आली
नहीं मारी तुझे पिचकारी
मैंने मारी नहीं पिचकारी,
भर कर रंग, चला कुंज गलियन,
मारी नहीं पिचकारी।
शायद तुझको भूल हुई है
या यह मेरी राह नई है,
मगर यही सच मेरा
रंग नहीं यह मेरा,
नहीं, मैंने मारी नहीं पिचकारी।
मेरा रंग बड़ा अनजाना,
जिसको खुद ही नहीं पहचाना।
मगर आयी अब होली,
तेरी कान पड़ी मीठी बोली,
हाँ, मारी मैंने पिचकारी
तुझे मारी मैंने पिचकारी।
अतीव सुन्दर
Very very nice lines
बहुत बढ़िया कविता
मगर आयी अब होली,
तेरी कान पड़ी मीठी बोली,
हाँ, मारी मैंने पिचकारी
तुझे मारी मैंने पिचकारी।
_______ होली के सुंदर पर्व पर एक सखी से वार्तालाप करते हुए कवि सतीश जी की बहुत ही सुंदर कविता, कवि ने इस कविता को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है शानदार प्रस्तुति बहुत उमदा लेखन
अति सुंदर रचना
गाली न दे मुझे आली
नहीं मारी तुझे पिचकारी
मैंने मारी नहीं पिचकारी,
भर कर रंग, चला कुंज गलियन,
मारी नहीं पिचकारी।
शायद तुझको भूल हुई है..
होली पर एक सखी से कुंजगलियों मे हुई मीठी तकरार को लिखती हुई सुंदर रचना