रंग के त्यौहार में
ऐसी सुना दे पंक्तियाँ
जो मधुर रस सींच दें,
रंग के त्यौहार में
रंगीनियों को सींच दें।
अश्क सारे सूख जायें
होंठ गीले से रहें,
नैन में काजल लगा हो
खूब नीले से लगें।
गाल पंखुड़ियां गुलाबी
लाल हो अधरों में रंग
देख कर के लालिमा भी
आज रह जायेगी दंग।
चाँद चमका हो मस्तक में
और दस्तक हो दिलों में
भर तेरे रंगों को खुद में
आज फूलों सा खिलूँ मैं।
प्रेम पिचकारी भरी हो
मारकर बंदूक सी
फिर उठे थोड़ी सी सिहरन
ठंड सी कुछ हूक सी।
खिलखिला भीतर व बाहर
खुशियां मनाऊं इन पलों की
खूब रंगों को उड़ेलूँ
होली मनाऊं इन पलों की।
ऐसी सुना दे पंक्तियाँ
जो मधुर रस सींच दें,
रंग के त्यौहार में
रंगीनियों को सींच दें।
होली मनाऊं इन पलों की।
ऐसी सुना दे पंक्तियाँ
जो मधुर रस सींच दें,
रंग के त्यौहार में
रंगीनियों को सींच दें।।
–++ जय राम जी की
बहुत बहुत धन्यवाद विकास जी
ऐसी सुना दे पंक्तियाँ
जो मधुर रस सींच दें,
रंग के त्यौहार में
रंगीनियों को सींच दें।
________वाह सर होली के त्यौहार पर बहुत ही सुन्दर कविता है।होली के रंगों की सुंदर छटा बिखेरती हुई कवि सतीश जी की बहुत ही मोहक रचना,सुंदर शिल्प और सुंदर भाव से परिपूर्ण शानदार प्रस्तुति, अति उत्तम लेखन
अत्यंत उत्साहवर्धक समीक्षा की है आपने। इस सुन्दर समीक्षा हेतु बहुत बहुत धन्यवाद गीता जी
वाह 🙏
धन्यवाद
वाह सतीश जी होली पर बहुत सुंदर कविता
बहुत बहुत धन्यवाद जी
अतिसुंदर
ऐसी सुना दे पंक्तियाँ
जो मधुर रस सींच दें,
रंग के त्यौहार में
रंगीनियों को सींच दें।
अश्क सारे सूख जायें
होंठ गीले से रहें,
नैन में काजल लगा हो
खूब नीले से लगें।
वाह बहुत खूब ,शानदार