सात रंग के कलश
सात रंग के कलश भरे हैं,
अबीर उड़ रहे हैं पवन में l
राहें भी रंगीन हुई है,
जब से आप बसे हो मन में l
सुर्ख पलाश का केसरिया पानी
बरसाऊंगी प्रीतम तुम पर,
बचने के लिए बना लो,
तुम चाहे कोई कहानी l
पीत, हरित गुलाबी नीला,
केसरिया और लाल
सात रंग के,
अबीर का लेकर आई थाल l
आज राह नहीं बचने की,
रंगे तो जाओगे हर हाल
रंग है सभी पक्के,मेरे पास
हर रंग के गुलाल हैं l
जी भर कर खेलेंगे होली,
कोई न रोके,..किसकी मजाल है l
पानी में केसर घुली,चंदन महके अंग
ना जाने कब रंग गया फागुन सारे रंग
अकस्मात् मत तोड़ना संयम के प्रतिबंध,
आज धवल वसन भी भीगेंगे सतरंग
हृदय पलाश सा हो गया है,
तन यह हुआ है रोली
बज उठी खु़शियों की तरंग,
आओ मिलकर खेलें होली॥
_____✍गीता
अतिसुन्दर रचना
हार्दिक धन्यवाद कमला जी
बहुत सुंदर रचना
आभार पीयूष जी
सात रंग के कलश भरे हैं,
अबीर उड़ रहे हैं पवन में l
राहें भी रंगीन हुई है,
जब से आप बसे हो मन में l
—– होली के रंगों से सरोबार कवि गीता जी की बहुत सुन्दर रचना। अत्यंत सुंदर रचना।
इस सुंदर और प्रेरणा देती हुई समीक्षा हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी अभिवादन सर
बहुत सुंदर रचना
बहुत-बहुत धन्यवाद सर
अतिसुंदर रचना
बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी🙏
JAy ram jee ki
जय राम जी की🙏
क्या बात है बहुत ही उम्दा लेखन आपका आपकी लेखनी बहुत ही अच्छी चलती है
धन्यवाद जी