कर्मफल
स्वप्नों के बीज पर ही कर्म फल लगते हैं
स्वप्न सीढ़ियों पर चढ लक्ष्य के फल चखते हैं ।
बगैर स्वप्न देखे कहाँ हम आगे बढ़ते हैं
बगैर इसके कहाँ उपलब्धियाँ हासिल करते हैं ।
कल्पना ही है वह आधार भूमि
लक्ष्य इमारतों की बुनियाद जिसपर रखी होती हैं
जीजिविषा के दम पर ही मन साकारता को पाती हैं
हर नवनिर्माण के पीछे चेतना संघर्ष करते हैं
स्वप्न के बीज पर ही कर्म फल लगते हैं ।
हमारा व्यक्तित्व सशक्त स्वप्न की पहचान है
हमारी पायी गयी मंजिल हमारे अरमान हैं
स्वप्न हमारी हर आनेवाली समस्या का समाधान है
इसके बल पर आत्मविश्वास को उङान देते हैं
स्वप्न के बीज पर ही कर्म लगते हैं ।
बहुत ही खूबसूरत लिखती हो आप
सादर आभार
बहुत ही बेहतरीन
शायद ! स्वप्न का प्रयोग यहां इच्छाओं और अभिलाषाओं के लिए हुआ है।
सुन्दर भाव
जी हाँ ।
बहुत बहुत धन्यवाद
भाषा, शिल्प और संवेदना जैसे महत्वपूर्ण मानकों पर निखरती सुन्दर रचना, वाह
सादर आभार ।
Superb
बहुत बहुत धन्यवाद
सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत खूब सुंदर भाव
बहुत बहुत धन्यवाद सर
सुंदर काव्य चित्रण
बहुत बहुत धन्यवाद
सुन्दर भाव
बहुत बहुत धन्यवाद
बेहतरीन प्रस्तुति