प्रेम विरह

प्रेम विरह

क्या सही है ,क्या गलत ,
ना जानू ।
पर आंखें  टपक- टपक
नयन-जल बौछार में ;
भीगा तनबदन,
क्या करूं? क्या ना करूं ?
ना जानू।

नाराज़ हूं ;मैं खुद से
पर क्यो वो नाराज़ हैं ?
ग़लत मैं थी या वो ?
ना जानू ।

पर क्यों ना रह पाऊ?
क्यों ना कह पाऊं?
हर दूख , हर पीड़ा
सह जाऊं,
क्रोध को उनके,
जफ़ा  को उनकी
पानी-सा समझ पी जाऊं
पर कैसे मनाऊं उनको ?
ना जानू।

एक कक्ष में
दो परिंदे ,
कैसे ?कब से ?
हम हो गए
ना जानू।

कुछ भी तो ना भाता ,
उन बिन,
एक दिन भी  सौ साल लगे
कितना मोह होने पर भी
खफा तुम कैसे हो गए
ना जानू ।

—- मोहन सिंह मानुष

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

फ़िर बतलाओ जश्न मनाऊँ मैं कैसी आजादी का

आतंकी की महिमा मंडित मंदिर और शिवाले खंडित पशु प्रेमी की होड़ है फ़िर भी बोटी चाट रहे हैं पंडित भ्रष्टों को मिलती है गोदी…

जंगे आज़ादी (आजादी की ७०वी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित)

वर्ष सैकड़ों बीत गये, आज़ादी हमको मिली नहीं लाखों शहीद कुर्बान हुए, आज़ादी हमको मिली नहीं भारत जननी स्वर्ण भूमि पर, बर्बर अत्याचार हुये माता…

Responses

  1. जानू शब्द का दो अर्थ
    जानू- जानने से
    जानू- प्रेमिका को सम्बोधित करता है
    यह शब्द ही कविता मे रोचकता ला देता है
    बहुत अच्छा कविता है🙏

    1. बहुत बहुत धन्यवाद 🙏 ऋषि जी, लेकिन कविता एक विरिहणी
      के अंतर्मन मैं चल रहे भाव को प्रदर्शित करती है , मतलब प्रेम से व्याकुल किसी महिला के बारे में है

      1. आप अपनी जगह ठीक अर्थ निकाल रहे हैं
        उदाहरण के लिए-
        रोको मत, जाने दो, दो अर्थ है
        १- रोको मत ,जाने दो
        २- रोको ,मत जाने दो
        ठीक इसी प्रकार से आपने कई जगह कामा लगाकर तथा प्रश्नवाचक चिन्ह लगाकर कविता में चार चांद लगा दिए
        शायद मैं गलत हूं आप सही
        🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 कविता काफी खूबसूरत है

  2. ऋषि सर इसमें माफी किस बात की, ऐसे माफी मांग कर कृपया शर्मिन्दा न करें हमें । मैंने आज ही टिप्पणी पढ़ी है आपकी विलम्ब से जवाब के लिए क्षमा प्रार्थी 🙏
    ऐसा कोई ज़रूरी नहीं होता कि एक ही बात का एक ही मतलब निकलें मैंने कुछ और सोच कर लिखा और आपने कुछ और समझकर पढ़ा इसमें ग़लत तो दोनों नहीं है
    ऋषि जी में अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में बहुत कम लिखता हूं
    और दूसरो के जीवन के अनुभव के बारे में ज्यादा
    अब ये रचना उसी का परिणाम हैं
    और ज्यादा हृदय पर ना ले ,मेरी पहली टिप्पणी को और ऐसे ही हौसला बढ़ाते रहें ,धन्यवाद।

+

New Report

Close