प्रेम विरह
प्रेम विरह
क्या सही है ,क्या गलत ,
ना जानू ।
पर आंखें टपक- टपक
नयन-जल बौछार में ;
भीगा तनबदन,
क्या करूं? क्या ना करूं ?
ना जानू।
नाराज़ हूं ;मैं खुद से
पर क्यो वो नाराज़ हैं ?
ग़लत मैं थी या वो ?
ना जानू ।
पर क्यों ना रह पाऊ?
क्यों ना कह पाऊं?
हर दूख , हर पीड़ा
सह जाऊं,
क्रोध को उनके,
जफ़ा को उनकी
पानी-सा समझ पी जाऊं
पर कैसे मनाऊं उनको ?
ना जानू।
एक कक्ष में
दो परिंदे ,
कैसे ?कब से ?
हम हो गए
ना जानू।
कुछ भी तो ना भाता ,
उन बिन,
एक दिन भी सौ साल लगे
कितना मोह होने पर भी
खफा तुम कैसे हो गए
ना जानू ।
—- मोहन सिंह मानुष
वाह वाह
बहुत बहुत आभार
खूबसूरत रचना
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
🙏🙏
Beautiful
बहुत बहुत आभार 🙏
वाह वाह क्या बात है
बहुत बहुत धन्यवाद
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत बहुत आभार 🙏
Beautiful
Thank you
Beautiful
🙏🙏
जानू शब्द का दो अर्थ
जानू- जानने से
जानू- प्रेमिका को सम्बोधित करता है
यह शब्द ही कविता मे रोचकता ला देता है
बहुत अच्छा कविता है🙏
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏 ऋषि जी, लेकिन कविता एक विरिहणी
के अंतर्मन मैं चल रहे भाव को प्रदर्शित करती है , मतलब प्रेम से व्याकुल किसी महिला के बारे में है
आप अपनी जगह ठीक अर्थ निकाल रहे हैं
उदाहरण के लिए-
रोको मत, जाने दो, दो अर्थ है
१- रोको मत ,जाने दो
२- रोको ,मत जाने दो
ठीक इसी प्रकार से आपने कई जगह कामा लगाकर तथा प्रश्नवाचक चिन्ह लगाकर कविता में चार चांद लगा दिए
शायद मैं गलत हूं आप सही
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 कविता काफी खूबसूरत है
माफ करिएगा हम पूरी तरह से गलत है🙏🙏🙏
ऋषि सर इसमें माफी किस बात की, ऐसे माफी मांग कर कृपया शर्मिन्दा न करें हमें । मैंने आज ही टिप्पणी पढ़ी है आपकी विलम्ब से जवाब के लिए क्षमा प्रार्थी 🙏
ऐसा कोई ज़रूरी नहीं होता कि एक ही बात का एक ही मतलब निकलें मैंने कुछ और सोच कर लिखा और आपने कुछ और समझकर पढ़ा इसमें ग़लत तो दोनों नहीं है
ऋषि जी में अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में बहुत कम लिखता हूं
और दूसरो के जीवन के अनुभव के बारे में ज्यादा
अब ये रचना उसी का परिणाम हैं
और ज्यादा हृदय पर ना ले ,मेरी पहली टिप्पणी को और ऐसे ही हौसला बढ़ाते रहें ,धन्यवाद।