बीता कल
जब उसने आँखे खोली,
तब पाया एक नया संसार,
रंग बिरंगी थी दुनिया उसकी,
और खुशिया आपार,
खेलती थी आँख मिचौली,
संग अपने हमजोली,
न पड़ती थी डॉट उन्हें,
दो बोल मीठे बोलते,
पा लेते थे, सब हँसकर,
क्या नया था क्या पुराना,
जो भी था; सब था प्यारा,
खेल घरौंदे के खेले उसने,
छुपकर करते थे श्रृंगार,
न बंधी वो, बंधन में,
नाचती गाती अपनी मगन में,
क्या कब कौन जान है पाता,
क्या है अगले ही पल में,
और कौन छुपा है,
किसके भीतर,
छिपा बैठा था ,एक शैतान!
और वो भी थी; उससे अंजान,
जा फंसी वो उस चंगुल में,
बोध नहीं रहा उस पल में,
आँसु भी न बह पाए,
थी बैठी वो सब गवांए,
क्या विडंबना कि बच न पाई,
जा पहुंची गर्त की खाई में,
छिन सा गया उसका बचपन,
भागती रही अपनो से दुर,
खोती रही वो अपना सकुन,
हो जाती कमरें में बंद,
बोल गए ! सब मीठे,
न चाहती थी मिलना जुलना,
सिर्फ अपनें गम में घुलना,
न सुबह की लाली पाती,
न सर्दी की धुप,
हर एक व्यक्ति तब मुजरिम लगता,
मन में यह सब; कब तक चलता,
होकर सबसे दुर,
कैद हो गई वो
जा गमों के पिंजरों में,
उड़ने की अभिलाषा न जगी,
न कुछ पाने की चाह,
वक्त भी न भर पाया,
उस बीते कल को.
सोचती रही; वो जब उस पल को।…
सुंदर अभिव्यक्ति
🙏🏼
मार्मिक रचना
बहुत बहुत आभार
मार्मिक भावाभिव्यक्ति, सुन्दर रचना
भाव को समझने के बहुत बहुत धन्यवाद सर
अतिसुंदर भाव
बचपन में बेटियों के साथ जो हैवानियत होती है वो बहुत ही अमानवीय घृणित कृत्य है जिसके कारण पूरी जिंदगी बदल जाती है उस बेटी की आपने कविता के माध्यम से बहुत ही मार्मिक, असरदार विषय को पेश किया है
पढ़कर हृदय भर आया 😭😔
बहुत लाजवाब 👏👏👏👏
आपकी समीक्षा से मेरी कविता को सच में जीवनदान मिल गया
आपने बहुत सुंदर समीक्षा की है उसके लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद 🙏
बहुत ही मार्मिक
धन्यवाद
Bahut sundar kavita
हार्दिक धन्यवाद
वाह क्या बात है
धन्यवाद सर
Bhot khoob🌸
बहुत बहुत आभार