बन्द नफरत की निगाहें कर ले
सदा अगलात ही न खोज
मेरी वाणी में,
कभी तो सत्य के अल्फाज
भी ग्रहण कर ले।
प्यार के नैन को
उपयोग में ला,
बन्द नफरत की निगाहें कर ले।
न भर अस्काम खोज कर
अपनी झोली को,
बल्कि इफ्फत से अपनी राहें चल,
कमी मेरी नजरअंदाज कर ले,
नफरतों का उबाल कम कर ले।
शब्दार्थ-
अगलात- अशुद्धियां
अस्काम – बुराइयां
इफ्फत -पवित्रता
Very nice lines
सादर धन्यवाद
सुंदर कविता
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर कव्य रचना है। इसमें कवि ने सीख दी है कि दूसरों की कमियों को नज़र अंदाज़ करना चाहिए। प्रत्येक इंसान में कमियां भी होती हैं और अच्छाइयां भी तो क्यों ना हम उसकी अच्छाइयों से कुछ सीखे और कमियों को अनदेखा करें ।कभी कभी ऐसा करने से उस व्यक्ति में सकारात्मकता भी आ सकती है ।ये एक थैरेपी का काम करेगी।
इतनी शानदार समीक्षा कोई विद्वान व्यक्तित्व ही कर सकता है। समीक्षा में इस तरह का भाव विश्लेषण दिख रहा है, जो कि काबिलेतारीफ है। आपकी इस शैली को सैल्यूट है गीता जी। हार्दिक आभार व्यक्त कर रहा हूँ।
बहुत बहुत शुक्रिया सर🙏 इतनी तारीफ़ के लिए आपका हार्दिक आभार एवम् स्वागत..
बहुत ही सुन्दर
सादर धन्यवाद सुमन जी
बहुत बढ़िया कविता
Dhanyvad
सुंदर पंक्तियां
सादर धन्यवाद जी
बहुत ही सुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद
अतिसुंदर भाव
सादर आभार
Very nice poem