साझी साइकिल ले लेते
खेल चल रहा था बच्चों का
छोटे छोटे बच्चे थे,
आपस में वे प्यारी प्यारी
बातें बोल रहे थे।
कोई थे धनवान घरों के
कोई थे धन से कमजोर,
लेकिन बच्चे सभी बराबर
बात कर रहे थे दिल खोल,
एक बोला मेरे पापा
जन्मदिवस पर लाये हैं
गियर वाली साइकिल का तोहफा
सात हजार में लाये हैं,
दूजी बोली मैं भी जल्दी
साइकिल लेने वाली हूँ,
पांच हजार की सुन्दर सी
मैं साइकिल लेने वाली हूँ,
सात बरस की एक गुड़िया
ग्यारह की दीदी से बोली,
दीदी अगर दस रुपये की भी
साइकिल आती होती तो
तुम भी लेती मैं भी लेती,
इतनी सस्ती आती तो।
अगर बीस की भी आती तो
साझी साइकिल ले लेते,
खूब सवारी करते रहते
हम भी खूब मजे लेते।
साझी साइकिल ले लेते,
खूब सवारी करते रहते
हम भी खूब मजे लेते
_________बच्चे मन के सच्चे, बच्चों की मासूमियत को दर्शाती हुई कवि सतीश जी की बहुत ही सुंदर रचना।कविता दिल को छू गई सर,वास्तव में बहुत ही उत्कृष्ठ रचना है यह आपकी।
‘
बहुत ही बढ़िया कविता
बहुत उम्दा
उम्दा लेखन
“दीदी अगर दस रुपये की भी
साइकिल आती होती तो
तुम भी लेती मैं भी लेती,
इतनी सस्ती आती तो।
अगर बीस की भी आती तो
साझी साइकिल ले लेते,”
बड़ी ही मार्मिक चित्रण किया है पाण्डेयजी आपने।