अजैविक गम
अजैविक गम की खाद से ख़ुशी हो गई बोन्साई राजेश’अरमान’
अजैविक गम की खाद से ख़ुशी हो गई बोन्साई राजेश’अरमान’
होठों पे ख़ामोशी की लहरें ढूंढ़ती है लफ़्ज़ों के समुन्दर राजेश’अरमान’
कुछ तो बात है तेरे शहर की ये ज़ख्मों को भी तन्हा नहीं रखते राजेश’अरमान’
वो खफा है अब इस बात पर आता नहीं सलीका गम उठाने का राजेश ‘अरमान’
ज़िक्र तिरी वफ़ा का मसला था , जो अब न रहा मैं कब तिरी आँखों में बसा था, जो अब न रहा इक बुतखाने की…
गुज़ारिश गुज़ारिश गुम हुआ अपने शहर की गलिओं मेँ अपना साया है मैंने भी कब अपने शहर का कोई क़र्ज़ चुकाया है अब तो हो…
फेहरिस्त में भुलाने के नाम, मैं रोज़ सजा लेता हूँ इसी बहाने मैं सबको , याद करने का मज़ा लेता हूँ चाक किस्मत के रहने…
जो यादों में बसा है ,उसे वहीँ रहने दो मेरी दी हुई हिचकिओं में, उसे रहने दो आज साकी तू रुख से पर्दा नहीं नक़ाब…
कोई शाम फिर रात की बाँहों में दम तोड़ गई रात भर वो शाम दरवाज़े पे देती रही दस्तक कुछ धुँधले से साये करीब आकर…
अपनी उलझनों के हम यूँ आदी हो गए है कभी मुजरिम तो कभी फरियादी हो गए है न होता कुछ तो कुछ और जरूर होता…
तेरे सायें से लिपटना मेरी आदत भी नहीं प्यार तो दूर बहुत मैं तेरी नफरत भी नहीं क्या दबा रखा है अंदर किसी खंजर की…
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