सजदा करते उम्र गुजर गई
सजदा करते उम्र गुजर गई मुँह फेरकर दुआ गुजर गई ज़िंदगी इसी कश्मकश में गुजरी , मेरी बंदगी बेवफा बन गुजर गई राजेश’अरमान’
सजदा करते उम्र गुजर गई मुँह फेरकर दुआ गुजर गई ज़िंदगी इसी कश्मकश में गुजरी , मेरी बंदगी बेवफा बन गुजर गई राजेश’अरमान’
मसखरी भी करती है ज़िंदगी तब जाना जब खुद को खुद पे हँसता हुआ पाया राजेश’अरमान’
दुनिया में रहकर दुनिया को तकता हूँ आईने को किसी दुश्मन सा तकता हूँ बेनूर से मंजर का हक़ लिए फिरता हूँ , आँखों से…
कुछ खत रेत पे लिखे , मैंने तेरे लिए फिर हवाओं को सदा दी, मैंने तेरे लिए अपने हिस्से की बूंदे तोगिरा दी मैंने कुछ…
नज़राना क्या दूँ ,दोस्त तेरी दोस्ती का हक़ अदा कैसे करूँ ,दोस्त तेरी दोस्ती का कहने को अल्फ़ाज़ कुछ इस तरह है मौजूँ न छूटे…
कितने पास आ गए है उजालों में छिपे अँधेरे कभी खुद को कभी अपनी परछाई को देखता हूँ राजेश’अरमान’
अपने नहीं औरों के कन्धों पे नज़र रहती है बोझ कभी न कभी जिन्हे मेरा उठाना है राजेश ‘अरमान’
रिश्तें आसमा में उड़ती पतंग की तरह है जिसे लूटने के लिए दुनिया खड़ी है राजेश’अरमान’
वो इतना घबरा गए है वफ़ा के नाम पर बेवफाई के नमूनो की तस्वीर सजा रहे है राजेश’अरमान’
तज़ुर्बे जलने के बटोरे उम्र भर जानता हूँ बेकार नहीं जायेगा राजेश’अरमान’
वो झूठ भी बोलते है इस सफाई से सच भी उनके सामने झूठ बन जाता है राजेश’अरमान’
कुछ गुजरने जैसी ही गुजर जाती है किसी तमगे की मोहताज नहीं होती ज़िंदगी राजेश’अरमान’
उनके फेके पत्थर अब तक उठा रहा हूँ न जाने फिर कब उनके काम आ जाएँ राजेश’अरमान’
मेरी तस्वीर से लेकर तक़दीर सब गर तय है मेरे हिस्सें में पाप -पुण्य का खाता क्यूँ ? राजेश’अरमान’
हाथ की लकीरें ही गर सुख-दुःख है जीवन फिर खेल कहाँ ,बस इक तमाशा है राजेश’अरमान’
गर मैं तुम्हे फिर पाने के लिए यहाँ हूँ ऐ खुदा फिर जुदा होने की ये सजा कैसी राजेश’अरमान’
गर खुदा होना ही मंज़िल है हाथों में गलत नक़्शा क्यों ? राजेश’अरमान’
अपने कण कण को बस तराश रहा हूँ तेरे जर्रें -जर्रें को बस तलाश रहा हूँ राजेश’अरमान’
हर आती साँस जाती साँस का अक्स है, और हर जाती साँस आती साँस का आईना राजेश’अरमान’
सब डोर है तेरे हाथों में अपने हाथों में चंद लकीरें राजेश’अरमान’
गर बंद आँखों से ही तेरा दीदार हो ख़ुदा ऑंखें खुलने की सजा न दे राजेश’अरमान’
हर रास्तों पे हमसफ़र जरूरी नहीं मंज़िलें जुदा हो तो मंज़िल नहीं मिलती राजेश’अरमान’
लकीरें जुदा कर सकती है हसरतें मिटा नहीं सकती राजेश’अरमान’
अपने कल्ब की आवाज़ भी न सुन सका शोर ज़माने का बाहर इस कदर था राजेश’अरमान’
टूटी शाख के पत्ते ,शाख के गुनाह होते है सजा बेगुनाहों को भी मिलती है इस तरह राजेश’अरमान’
मेरे क़त्ल के बाद इक क़त्ल और होगा आज की तारीख वफां पे फ़ना होगी राजेश’अरमान’
दम तो हर ख्वाइश में था आखिर निकला तो, दम निकला राजेश’अरमान’
आदरणीय ‘कार्टूनिस्ट ‘ प्राण जी को श्रद्धांजलि याद तो बहुत आओगे और भूलना बेहद मुश्किल तुम मेरे यादों में बसे तुम मेरे बचपन के साथी…
अब तो दिन बौने आदमकद रातें हो गई है बर्क आसमां पे आँखों से बरसातें हो गई है किस वफ़ा की तलाश में सिर खपाते…
किसी ने सूद से भरी पुरवाइयां चुनी किसी ने दर्द भरी शहनाइयां चुनी हमें कुछ चुनने का हुनर न आता था सो गम से…
गर समझ न सके मेरे मौन को शब्दों को क्या समझ पाओगे पास आकर भी तुम मन के हाशिये से दूर ही रह जाओगे सब…
तुम कहाँ रहते हो? मैं अपनी आत्मा की परछाई में रहता हूँ तुम क्या करतेहो ? मैं चुपचाप सब कुछ सहता हूँ तुम क्या देखते…
कभी तो मेरे माजी का क़त्ल कर दिया जाएँ जख्म जैसा भी हो कुछ पल भर दिया जाएँ माना की शब की जीस्त दुआओं से…
कोई आहट नहीं कोई आवाज़ नहीं टूटा पत्ता हूँ कोई शाख नहीं अपने हाथों से किया क़ैद खुद को पंख तो हूँ मगर परवाज़ नहीं…
एक जरूरी दस्तावेज ही तो है जीवन न कागज़ अपना न स्याही अपनी फिर भी भ्रम अपना कहने का अपनी सासें अपनी धड़कन से विवाद…
ज़िंदगी क्या है एक अदाकारी है न तुम्हारी है न हमारी है ख्वाब आये भी तो रात के पिछले पहर क्या कहे कैसे बाकी रात…
हाथ की रेखाएं न बदनाम कर डालो कुछ नज़र अपने करम पर भी डालो तेरा वज़ूद खड़ा एक गुनहगार सा क्या हर्ज़ खुद को कातिल…
हर सांस है मुजरिम न जाने किस गुनाह में हर ख्वाईश है क़ैद न जाने किस गुनाह में न कुछ बस में तेरे न कोई…
हर चेहरे अपने पर कोई आश्ना न मिला गिला खुद से मगर कोई आईना न मिला अपनी तक़दीर-बुलंदी का क्या कहना बर्क़ को जब कोई…
कहाँ से फिर निकला आरजुओं का सैलाब चंद कागज़ लपेट ,जिंदगी बन गई है किताब / कभी लगता पहन ल़ू ,लगता कभी ओढ़े बैठा हूँ…
बेज़ुबान दर्द सो गया ,करवट न ले सकी नींद हमारी लम्हे रुके रुके से रहे , थक के सो गयी किस्मत हमारी क्या रखा था…
एक आहट सी सुनी है तेरे जाने के बाद कोई समझाए क्या बारहा समझाने के बाद डूबा बैठा हूँ न जाने किस सोच के समुन्दर…
सिर्फ एहसास है वफ़ा फिर छूने को जी करता है यह कौन देता है सदा सुनने को जी करता है हर शख्स का वज़ूद जुदा…
वक़्त की स्याही ज़िंदगी के कोरे कागज़ पर न जाने क्या लिख जाती है कभी ये कागज़ किताब बन जाते ,कभी ये महज पन्नें बन…
कतरा कतरा लहूँ का जिस्म में सहम गया चलो इसी बहाने रगों में बहने का वहम गया वो कोई हिस्सा था मेरे ही जिस्म का…
कतरा कतरा लहूँ का जिस्म में सहम गया चलो इसी बहाने रगों में बहने का वहम गया
उसने खौफ से कभी आइना साफ़ न किया आ जाएँ न नज़र कहीं तस्वीर साफ़ उसकी राजेश ‘अरमान’
आंधियो मेहमां बन जब जी चाहे तुम आया करो अर्ज़ बस इतनी तुम दरख्तो को न गिराया करो तूफा तो हर तरफ हर जगह आते…
इक गुमशुदा की तलाश में तमाम उम्र गुजर गई काश हम कुछ जान -पहचान खुद से पहले ही कर लेते राजेश’अरमान’
आंसुओं का क्या है निकलते है फिर कुछ बह जाते ,कुछ सूख जाते है लफ्जों के जहर ही तकलीफ दे जाते है लहूँ में घुल…
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