जीवन सिर्फ जीवकोपार्जन
जीवन सिर्फ जीवकोपार्जन के लिए किया प्रयास नहीं है जी सभी रहे है लेकिन जीने का एहसास नहीं है सदियाँ बीती हवाओं की भी इस…
जीवन सिर्फ जीवकोपार्जन के लिए किया प्रयास नहीं है जी सभी रहे है लेकिन जीने का एहसास नहीं है सदियाँ बीती हवाओं की भी इस…
इक बार मेरी सिसकती कलम ने कोरे कागज़ पर लकीरें खीच दी मैं सारी उम्र उसे जीवन रेखा ही समझता रह गया इक बार मेरा…
फासलों का मंजर देख कुछ याद आया किसी अजनबी शहर सा बस ख्याल आया कोई शोर नहीं किया आईने ने उस वक़्त जब देख चेहरा…
छोड़ आया थी अपनी तन्हाई को भींड में लुत्फ़ अब ले रहां हूँ तन्हाई की भीड़ में राजेश ‘अरमान’
अजनबी सांसें हो गई जब अपनी ही ज़ीस्त की लोग कहते सबसे खुल के मिला करों राजेश ‘अरमान
गैरों के हम तो गुनाहगार हो गए , जब उनके नाम का कोई सितम न मिला राजेश’अरमान’
उम्मीद से माना ये दुनिया चल रही है पर उम्मीद का चलते रहना भी ज़रूरी है राजेश’अरमान’
समुन्दर में एक क़तरा न डाल अपने वज़ूद का खुद को चाहे तो एक क़तरा ही रहने दे राजेश ‘अरमान’
उसके फैसलों पे कैसे होता ऐतबार मुझे ज़ख्म भी मेरे ,गुनाहगार भी मैं राजेश’अरमान’
ज़िंदगी का खेल साँप-सीढी से है जुदा यहाँ तो हर अंक पे साँप बैठे है राजेश’अरमान’
गर वाबस्ता हो जाता रूहे-अहसास से जमाना न कोई शायरी होती न कोई ग़ज़ल होती गर वफ़ा करने की आदत होती जहाँ में न कोई…
तेरा सादा-दिली से ज़ख्म देना लाजमी है बेरुखी से तो हम मुस्तैद हो जाते राजेश’अरमान’
उसने माँगा उसकी वादा-खिलाफी का हिसाब तब से ज़िंदगी बस इसी काम में लगी है राजेश’अरमान’
तेरे साथ गुज़ारे चंद लम्हों की जागीर की बस मिल्कियत रखता हूँ ये अलग बात है खुद को सबसे अमीर अब भी समझता हूँ राजेश’अरमान’
वो जब हमसफ़र थे तब भी अच्छे लगते थे आज दूर से हाथ हिलाते हुए भी अच्छे लगते है क़ुर्बतों की दास्ताँ भी फ़क़त चंद…
वो बस मुझे ढूंढ़ता रहा हाथ की लकीरों में कमबख्त एक बार हाथ तो बढ़ाता राजेश’अरमान’
इतनी गुजरी है ज़िंदगी , आगे भी गुजर जाएगी किसकी ठहरी है ज़िंदगी , जो मेरी ठहर जाएगी बस दौड़ते पकड़ते फिरे, चुनते फिरे गिरे…
बंदगी तेरी यूँ मेरे काम आ गई अब किसी दुआ की जुस्तजू न रही राजेश’अरमान’
वो बारिश का मौसम वो गरम गरम जलेबी वो धुआं छोड़ती चाय छतों से टपकता पानी छातों का साफ़ कर घर से निकलना पानी से…
एक ढहती हुई ईमारत की ईट से बढ़कर न सही लेकिन ईमारत की नीव भी कभी इसी ईट ने ही रखी थी राजेश’अरमान’
हर बार गिरे ,फिर सम्भले सिलसिला ये बरक़रार रखते है हम वो गुलिस्ता है जो फूलों से नहीं काटों से प्यार रखते है तिरी…
सब तो लिख गए दर्द ,मीर,मोमिन,फैज़ , दाग,साहिर ग़ालिब ,फ़राज़ हम तो खाक है बस ,कलम की रोशनाई कागज़ों पे घिस रहें है राजेश’अरमान’
हर मौसम में बदल जाती है , अपने ही अंदर की अपनी तस्वीर राज़ ये गहरा है जिसे कोई समझ पाया नहीं गम की चाह…
इन बहकते बादलों को कोई राह तो दिखलाये बरसना था खेतों पे ,किसान की आँखों में बरस रही है टकटकी फिर भी लगी आसमान की…
मेरी ख़ामोशिओं से वाबस्ता नहीं जब रूह तेरी , मेरे लफ़्ज़ों के तो फिर जनाज़े ही निकल जायेंगे राजेश’अरमान’
आयतों की खवाइश में इक मज़ार बन के रह गया दुनिया के कारखाने का बस औज़ार बन के रह गया न किसी मंदिर ,न मस्जिद…
मंज़िलें कुछ इस कदर हमसे जुदा हो गई है ये हमारे वास्ते तो बस ख़ुदा हो गई है अच्छे दिन आने वाले है बस सुनते…
जाने क्यूँ वो छोड़ के मेरा साथ गया तन्हाइयों के पुर्ज़े दे के मेरे हाथ गया हमें तो सुकूँ था वक़्त के सूखों में भी…
मुक्त आकाश में हवाओं ने कब किसी का रास्ता रोका है हम ही तेज हवाओं के भय से रास्ते बदल लेते है रास्तों ने कब…
तेज भागती दौड़ती ज़िंदगी कुछ थक सा गया है इंसान अंदर से कुछ -कुछ एक धावक की भी दौड़ने की एक सीमा होती है जहा…
अपने शब्दों को कभी सच की , लिबास न ओढ़ा सका घुमते रहे मेरे शब्द झूठ के चिधडे ओढे , फटे फटे से कपड़ों में…
दरीचों से झाकती ये ज़िंदगी सड़को पर भागती ये ज़िंदगी हर तरफ फैली है चिंगारियां, , लम्बे क़दमों से लांघती ये ज़िंदगी राजेश ‘अरमान’
कैनवास मेरा और तस्वीर तेरी रंग मेरा पर रंगों की आराईश तेरी अश्कों के समुन्दर आँखों के मेरे , आँखों में तैरती कश्तियाँ तेरी इस…
इक असीर सी जीस्त का पनाहगार हूँ मैं जो कभी न मुक्कमल हुआ वो असफ़ार हूँ मैं इख्लास का लिबास कहाँ मेरे नसीब में अपने…
आखरी उड़ान होगी किसे था गुमाँ आसमां में फैलेगा बस धुआं ही धुआं माना वक़्त के आगे बेबस रात दिन कैसे लगी आसमां पे हवाओं…
आश्ना कब तेरे शहर में कोई मिलता है जिसको देखो वो अजनबी सा मिलता है हमने देखी है इस जहाँ में ऐसी दरियादिली बिन मांगे…
पंछी इक देखा पिंजरे को कुतरता हुआ आज़ादी एक जुनूँ होती है एहसास हुआ बादल ही देते है बारिश और बिज़ली भी इस दुनिया के…
हर जुनूँ की कोई वज़ह होती है हर वज़ह ज़ूनू की सजा होती है हर शख्स सजा-याफ्ता है यहाँ , फर्क सालो का, पर सजा…
‘ उलझे हुए धागे भी सुलझाने से सुलझ जाते है उलझे रिश्तें सुलझाने से और उलझ जाते है / रिश्तों की नाज़ुकी को क़द्र की…
कुछ इस तरह से इक शाम गुजारी है अपने हिस्से के गम से की वफादारी है कुछ टुकड़ो में बाँट के रख दिया ग़मों को…
पुनर्जन्म क्या मिथ्या है ??? या यथार्थ समझ से परे ? हर नई सुबह भी तो होती है पुरानी सुबह का पुनर्जन्म अपने ही अंदर…
हर जाती सांस ने कहा देख शजर से कोई पत्ता टूटा राजेश ‘अरमान’
इल्म कुछ तो इधर भी होता है ख्वाब बंद आँखों में जगा होता है राजेश ‘अरमान’
कल छोड़ के आया था जिसे अँधेरे में वो तन्हाई आज , फिर मुझे रोशन कर रहीं है राजेश’अरमान’
रुके कदम कुछ कह जाते है देख मुड़ के अपने क़दमों के निशाँ राजेश’अरमान’
वक़्त कटता भी और काटता भी है फितरत इसकी भी है अपनों की तरह राजेश’अरमान’
साये भी अपने कभी छोटे कभी बड़े हो जाते है साये भी रखते है मेरे ग़मों से वास्ता जैसे राजेश’अरमान’
लुप्त होते रहे गर अच्छे इन्सां इसी तरह , इक दिन ये कहीं डाइनासोर न हो जाए राजेश’अरमान’
कितने मुश्किल सफर तय किये है मुड़ के तो देख अब रूक क्यों गया है फिर चल के तो देख राजेश’अरमान’
मुट्ठी में अपने आकाश, भरने का इरादा रखता हूँ तारों को हथेलिओं में ,सजाने का इरादा रखता हूँ किसी गिरी हुई इमारत की बस इक…
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