किसी सेहरा की रेत
किसी सेहरा की रेत पे लिखा कोई गीत नहीं हूँ समुन्दर की लहरों पे सजा कोई संगीत नहीं हूँ हर खेल मैंने खेले , अपने…
किसी सेहरा की रेत पे लिखा कोई गीत नहीं हूँ समुन्दर की लहरों पे सजा कोई संगीत नहीं हूँ हर खेल मैंने खेले , अपने…
कुछ ख्वाब के पत्थर सिर पे लगे है, खून रिसता नहीं बस जम सा गया है हर लम्हा जैसे बस थम सा गया है राजेश…
इन रास्तों पे कोई कितना यकीं करें इन रास्तों के भी कितने मोड़ होते है राजेश’अरमान’
डूबती कश्तियों को किनारा मिल भी जाएँ , नाखुदा की नीयत भी कुछ मायने रखती है राजेश’अरमान ‘
कभी ख़ामोशी बंद संदूक की देखना सामान सब भरा पर फिर भी गुमसुम राजेश’अरमान’
ग़ुम हुए इंसा की तलाश क्या ग़ुम ही रहेगा जहाँ रहेगा राजेश’अरमान’
गिरगिट की सभा नया गुरु चुनने के लिए कई बुजुर्ग गिरगिट , दावेदार बने पर किसी पर न , बन सकी सहमति युवा गिरगिटों की…
काफिलों के साथ साथ चलते रहे दुनिया के रंग में बस ढलते रहे राजेश’अरमान’
पतंग आसमाँ में उड़ती भी है और आसमाँ में कटती भी है राजेश’अरमान’
खामख्वाह वो अपने अंदाज़ सितम के बदलते है पुराने अंदाज़ भी सितम के कम लाज़वाब न थे राजेश’अरमान’
वो पढ़ना भी चाहते है मुझे पूरा , और आँखों में मेरी किताब भी नहीं राजेश’अरमान’
इन पत्थरों में तुम न जाने क्या ढूँढ़ते हो दुनिया में रहकर कौन सी दुनिया ढूँढ़ते हो बिक गया हर शख्स अपने ही बाजार में…
अपने ही लोग फिर शहर में दहशत क्यूँ अपनी ही आँखों में जहर सी वहशत क्यूँ कहीं तो सुनी जाएगी आख़िर फ़रियाद किसी सजदे को…
रास्तों का कष्ट उस मुसाफिर को क्या जिस मुसाफिर ने इसे जीवन पथ समझा जिनकी मंज़िल ही उलझी बैठी हो उसने कब जीवन का मतलब…
कुछ अकेले से एहसास फिरते है दरम्या मेरे कुछ कशिश है उदास फासलों के घने अँधेरे दबे कदम चलती साँसें सहमे कदम आते सबेरे हलकी…
खुद को बदलने से जरूरी है खुद का किरदार बदलना आदमी दुनिया में पहचाना जाता है किरदारों से राजेश’अरमान”
मेरे खत चाहो जब जला दो पर उसकी राख मुझे दे दो / इस रूह से लिखा था जिसे , रूह को राख की अमानत…
देखा जब भी लहरों को मचलते समुन्दर की गोद में लगता कोई बच्चा मचल रहा है अपनी माँ की गोद में देखा जब भी बादलों…
प्रेम सिर्फ अनुभूति है नहीं, प्रेम अनुभूति से अलग कोई एहसास है जिसे देखा जा सकता है किसी की आँखों में किसी की साँसों में…
जहाँ में दिल टूटने का यूँ न हादसा होता वफ़ा की तालीम का गर कोई मदरसा होता राजेश’अरमान’
काँपते ख़्वाबों को हक़ीक़त की जुम्बिश न मिली रूठे अल्फ़ाज़ों को किसी प्यार की बंदिश न मिली तिश्नगी लबों तक आकर खामोश हो जाती है…
चुनिंदा लम्हें घूम गए आँखों में जो लिपटे न थे दर्द की चाश्नी में कुछ तेरे साथ के वो पल जो शिकवा से न लिपटे…
झूठ के पैर बहुत लम्बे होते है और सच के हाथ राजेश’अरमान’
ना खुद को बदल सका ना तेरी निगाहों को सिलसिला बस चलता रहा खत्म होने के लिए राजेश’अरमान’
टुकड़े से पड़े है तेरे दिल के आसपास देखना कहीं मेरा दिल तो नहीं राजेश ‘अरमान’
चुपके से कोई शाम ढल जाती है और छोड़ जाती है जागती रातें रातें करवटें बदलती है तारे जागते पहरा देते है ख्वाब आँखों में…
मासूमियत उसके चेहरे की यूँ ग़ुम हुई जैसे कोई गाँव ,शहर में तब्दील हो गया हो राजेश’अरमान’
न जाने किस तरक्की की बात करते हो जब देखो नफरतों की बरसात करते हो हम बैठे है सरेराह जवाबों के तस्सवुर में जनाब तुम…
धर्मों में बिखरा इंसान सही मायने में नास्तिक है राजेश’अरमान’
उनके जुमलों से आती है बूँ जलन की हमने देखी है कुछ ताप उस अगन की फाकामस्ती भी कोई जागीर से कम नहीं लुत्फ़ उगते…
मखौल ज़माने का उड़ाने वाले गुनहगार तुम भी हो नफरतों के पेड़ उगाने वाले तलबगार तुम भी हो गुस्ताखी औरों की तो दिखती है नंगी…
लफ्जों की कबड्डी से मौन की कुश्ती भली राजेश’अरमान’
किसी ने कहा ,लिखते क्यों हो? मैंने कहा नहीं लिखता तो कहते कुछ लिखते क्यों नहीं? अपनी सोच को कलम में भर के लिखने को…
स्पर्श करके देखा जब कभी इस दुनिया को हाथ मेरे लहूलुहान हुए स्पर्श करके देखा जब कभी सन्नाटों को सन्नाटे कुछ ओर सुनसान हुए स्पर्श…
खुद की तो अब तक तलाश अधूरी है बन्दे तुझे बन्दे रहने की आस जरूरी है कदम कदम पर फैले है आडम्बर इतने इन्हे खत्म…
वज़ह कुछ नहीं फिर भी अंदर कुछ नहीं फिर भी धर्म क्या मैं जानता नहीं सबसे आगे खड़ा फिर भी जन्नत तो कोई ख्वाब है…
आँखों के तहखाने ख़ामोशी के वीराने बेकसूर को लगते बेवज़ह के जुर्माने राजेश’अरमान’
मेरा रंग उड़ने लगा है, देखकर , रंग बदलना उनका राजेश’अरमान’
फुर्सत जब से ग़ुम हुई तन्हाई तब से जुर्म हुई राजेश’अरमान’
ज़िद कभी न हारने की वज़ह कभी बनती है हार की राजेश’अरमान’
इधर आग लगी है बस्तिओं में उधर जनाब तैर रहे है पानी में राजेश’अरमान’
दर्द में भी अब मज़ा न रहा क़ल्ब भी अब पाकीज़ा न रहा परियों की कहानी पर भी यकीं था, हक़ीक़त में अब मोज़ेजा न…
कुछ तो हैरान होगी ज़िंदगी भी जब हमने अपना मुँह मोड़ लिया राजेश’अरमान’
कदम रुकने से मंज़िल कुछ और दूर हो जाती है मुसाफिर की थकन से राह मजबूर हो जाती है हौसलों की हवा से उड़े है…
खुद की भागम -भाग उसपे रस्ते आग ही आग कुछ शीतल भी है अम्बर के नीचे कुछ शांति भी है अम्बर के नीचे अपने ही…
कुछ तो दायरे हो , जिसमे रहना जरूरी है जिस के अंदर खुद को भी रखना जरूरी है प्रगति के हम एक कारीगर है मगर…
कभी मन करता है फिर से दुनिया को औरों की नज़र से देखूँ शायद मेरी नज़र में कोई भ्रान्ति दोष हो एक बार देखा जब…
कुछ परछाइयाँ सी चलती है मेरे पीछे , वक़्त भी बहरूपिया होता है गुमाँ न था राजेश’अरमान’
डोर रिश्तों की नाज़ुक होती है कभी फूल ,कभी चाबुक होती है राजेश’अरमान’
गहरे राज़ छुपे है अपनी ही साँसों में लो तो ठंडी छोड़ों तो गर्म -गर्म राजेश’अरमान’
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