मखौल ज़माने का

मखौल ज़माने का उड़ाने वाले गुनहगार तुम भी हो नफरतों के पेड़ उगाने वाले तलबगार तुम भी हो गुस्ताखी औरों की तो दिखती है नंगी…

स्पर्श करके देखा

स्पर्श करके देखा जब कभी इस दुनिया को हाथ मेरे लहूलुहान हुए स्पर्श करके देखा जब कभी सन्नाटों को सन्नाटे कुछ ओर सुनसान हुए स्पर्श…

खुद की तो अब

खुद की तो अब तक तलाश अधूरी है बन्दे तुझे बन्दे रहने की आस जरूरी है कदम कदम पर फैले है आडम्बर इतने इन्हे खत्म…

New Report

Close